SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टिप्पणियाँ ९७ (७) चिह्न या छिन्न – देव, दानव, राक्षस, मनुष्य और तियंचों के द्वारा छेदे गये शस्त्र, वस्त्र तथा प्रासाद, नगर और देशादि चिह्नों को देखकर तीनों काल सम्बन्धी शुभ, अशुभ, मरण तथा सुख-दुख आदि को जानना । ( ८ ) स्वप्न वात-पित्तादि दोषों से रहित व्यक्ति सुप्तावस्था में रात्रि के अन्तिम प्रहर में अपने मुख में प्रविष्ट चन्द, सूर्य के दर्शन रूप शुभ स्वप्न एवं घृत, तेल की मालिश, ऊँट, गधे आदि की सवारी या परदेश गमन रूप अशुभ स्वप्न देखकर तीनों कालों के सुख-दुख को बतलाने का ज्ञान | २०१२ दियवर ( द्विजवर ) — श्रेष्ठ ब्राह्मण । जैन परम्परानुसार सात्त्विक, अणुव्रतधारी तथा विवेकशील द्विज या ब्राह्मण को श्रावक माना गया है । जन्मसिद्ध किन्तु अविवेकी तथा अनाचारी ब्राह्मण उस श्रेणी में नहीं आ सकता | ५। १, ३ पाडलिपुर, पाडलिउत्ति ( पाटलीपुर, पाटलिपुत्र ) - आधुनिक पटना (बिहार ) । ई० पू० ४६७ के आसपास राजगृही के बाद पाटलिपुर को ही मगध की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । इसके अपरनामों में कुसुमपुर, पुष्पपुर एवं पुष्पभद्रपुर भी प्रसिद्ध हैं । जैन - इतिहासानुसार इसकी स्थापना कुणिक के पुत्र उदायि ने ई० पू० ४७० के आसपास की थी । अर्धमागधी आगम-साहित्य के अनुसार ई० पू० की चतुर्थ शती के सम्भवतः तृतीय चरण में यहाँ प्रथम संगीति का आयोजन किया गया था, जो पाटलिपुत्र- वाचना के नाम से प्रसिद्ध है । " विविधतीर्थकल्प" के अनुसार उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र की रचना यहीं पर की थी तथा स्वामी समन्तभद्र एवं महाकवि हरिचन्द यहाँ पर आयोजित शास्त्रकार- परीक्षा में सफल घोषित किये गये थे । आचार्य जिनप्रभ सूरि के अनुसार पाटलिपुत्र में १८ विद्याओं, स्मृतियों, पुराणों तथा ७२ कलाओं की शिक्षा का उत्तम प्रबन्ध था । भरत, वात्स्यायन एवं चाणक्य के लक्षणग्रन्थों, रत्नत्रय, यन्त्र, तन्त्र एवं मन्त्र-विद्याओं, रसवाद, धातुवाद, निधिवाद, ( सिक्का ढालने सम्बन्धी सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक ज्ञान ) अंजन गुटिका, पाद प्रलेप, रत्न- परीक्षा, वास्तु-विद्या, पुरुषलिंगी एवं स्त्रीलिंगी गज, अश्व एवं वृषभादि के लक्षण सम्बन्धी विद्याओं, इन्द्रजाल सम्बन्धी ग्रन्थों एवं काव्यों में वहाँ के निवासी यही कारण है कि आचार्य आर्यरक्षित चतुर्दश विद्याओं का अध्ययन करने हेतु दशपुर से पाटलिपुत्र पधारे अत्यन्त निपुण थे । थे (दे० विविधतीर्थकल्प पृ० ७० ) । १३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy