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पढियं च तेण -
गयपोययस्स मत्तस्स, उप्पइयस्स य जोयणसहस्सं ।
पए पर सय सहस्सं, एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥ ९ ॥ अन्नो भणइ
तिल आढयस्स वुत्तस्स, निष्फन्नस्स बहुसइयस्स । तिले तिले सयसहस्सं, एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥१०॥
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अन्नो भणइ
भद्रबाहु - चाणक्य- चन्द्रगुप्त कथानक
णवपाउसम्म पुन्नाए, गिरिनदियाए सिग्घवेगाए । गाहमहियमेत्ते, नवणीएण पालि बंधामि ॥११॥ - एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥
अन्नो भणइ
जच्चाण णव किसोराण, तद्दिवसेण जायमेत्ताणं । केसेहि नभं छामि एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥ १२ ॥
अन्नो भणइ
दो मज्झ अस्थि रयणाई, सालिपसूई य गद्दभीया य । छिन्ना छिन्ना वि सद्दति, एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥ १३ ॥ अन्नो भणइ–
सय सुक्कल निच्च सुगंधो, भज्ज अणुव्वय णत्थि पवासो । निरिणो यदुपंचसओ, एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥ १४ ॥
एवं नाऊण दव्वं मग्गियं जहोचियं । कोद्वारा भरिया सालीणं, ताओ छिन्ना छिन्ना पुणो जायंति । आसा एगदिवसजाया मग्गिया एगदेवसियं नवणीयं । सुवन्नुप्पायनत्थं च चाणक्केण जंतपासयाकया । कई भांति --- वरदिन्नया । तओ एगो दक्खो पुरिसो सिक्खाविओ । दीणारथालं भरियं सो भणइ - जइ ममं कोइ जिणइ, तो थालं गि । अह अहं जिणामि तो एगं दोणारं गिह्नामि । तस्स इच्छाए पासा पढंति । अओ न तीरए जिणिउं । जह सो न जिप्पक्ष एवं मणुसभी वि ।
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[ उत्तराध्ययन: सुखबोधाटीका से ]
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