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भद्रबाहु चाणक्य- चन्द्रगुप्त कथानक
[ २८ ]
Author's own and his teacher's eulogia.
कालचक्कु इम नियमणि बुज्झिवि विसय कसाय पउत्तें उज्झिवि ।
अप्पाहि चिंतित्व लोयहिँ छंदालंकार हूँ जि अणेय हूँ अमुणंतें मइँ एहु णिरुत्त 5 तं गुणियण महु दोस खमिज्जहु दहु वड्ढमाण - जिण - सासणु
कालि कालि देउ जि संवरसउ
दउ राणउ णीइ-वियाणउ वि सावय-वग्गु पुण्ण समग्गु 10 घरि-घरि वीयराउ अंचिज्जउ
वि
मुणि जस कत्ति सिस्स गुणायर मुणि तहँ पाल्द बंभुए णंदहु देवराय - संघाविर्णंदणु पोमावइ-कुल-कमल- दिवायरु
15 जस्स घरि रइधू बुहु जायउ चरिउ एहु णंदर चिरु भूयलि
१. इसके आगे का चरण त्रुटित है ।
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जिं भउ खिज्जइ पवरविवेयहिँ । तह पुणु गयमत्ताईं जि भेय हूँ । चरमायरियहु-चरिउ - पवित्तर | अयरें हीणा हिउ सोहिज्जहु । णंदर गुरुयणु सुतव - पयासणु । दुक्खु दुहिक्खु दूरि सो णिरसउ । पय पुणु णंदउ पाउ- णिकंदउ ।
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मिच्छातम भरु भव्वहँ खिज्जउ । खेमचंदु-हरिसेणु तवायर | तिणि वि पावहु भारु णिकंदहु | हरिसिंघु बुहयण-कुल- आणंदणु । सो विसुनंद एत्थु जसायरु । देव-सत्थ- गुरु-पय- अणुरायउ । पाढिज्जंतु पवट्टइ इह कलि ।
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घत्ता
इहु परियणु वुत्तर सुजस पवित्तर जा कणयायलु सूर-ससि । जावहिं महिमंडलु दिवि आहंडलु णंदर तावहिं सजस वसि ||२८||
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