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________________ भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक [ २६ ] पाटलिपुर के जलमन्थन नामक अन्तिम कल्किराजा के दुष्टकार्यों का विवरण। जलमन्थन को मृत्यु के बाद पंचमकाल के अन्तिमांश एवं छठे काल का रोचक वर्णन। पाटलिपुर ( पाटलिपुत्र ) में अन्तिम पापी कल्कि राजा जलमन्थन नाम का होगा । उसी के समय में वीरांगद नाम के एक तपस्वी ऋषिराज होंगे। उसीके समय में निर्दोष-व्रतों का पालन करनेवाली सर्वश्री नाम को एक आर्यिका (साध्वी) भी होंगी। उनके समय में अग्गिल नाम के एक श्रावक का होना भी बताया गया है तथा फल्गुश्री नाम की श्राविका का प्रकट होना भी कहा गया है । जलमन्थन नाम का वह कल्कि राजा पूर्व-विधान के अनुसार (अर्थात पूर्वोक्त कल्कि राजाओं के समान ) ही अप्रमाण ( असंख्य ) दण्डों (करों) से जनपद को पीड़ित रखेगा। ( उक्त ) मुनिवर एवं आर्यिका जब (श्रावक के घर) अपने हाथों पर आहार लेकर भोजन करेंगे तब वह जलमन्थन अपने किंकरों को भेजकर उनका आहार छिनवा लेगा। किन्तु उसी समय भयानक वज्रपात से वह ( राजा ) मर जायेगा। ___ यतियुगल भी अनशन कर प्राणों का त्याग करेगा। यह यतियुगल एवं (पूर्वोक्त- ) श्रावक-श्राविका ये चारों ही विशिष्ट जोव स्वर्ग में जावेंगे। उस समय तक-विकराल पंचमकाल के ८९ पक्ष ही अवशिष्ट बचेंगे । __ तत्पश्चात कहा गया है कि कात्तिक-मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या के दिन पूर्वाह्न में धर्म का क्षय हो जायेगा। उसी दिन के मध्याह्न में नृपशासन समाप्त हो जायेगा और तत्पश्चात् अपराह्न में हुताशन ( अग्नि ) का क्षय हो जायेगा । इस प्रकार दुःखदायी पंचमकाल का वर्णन किया गया। घत्ता-तत्पश्चात् अति दुषम नामक छठा काल आयेगा जिसका, कालप्रमाण कुल २१ हजार वर्ष का होगा। ॥२६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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