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विषय-क्रमांक
क्रम
विषय
प्रथम-अध्याय १. मङ्गलाचरण तथा ग्रंथलेखन प्रतिज्ञा २. पाक्षिकों का चिह या उनका लक्षण ३. सदगुरु के विषय में पाक्षिक का भाव ४. देव के विषय में पाक्षिक का भाव । ५. शास्त्र के दिशय में पाक्षिक का भाव
स्वाचार के विषय में पाक्षिक का भाव पाक्षिक श्रावक की धार्मिक प्रवृत्ति पाक्षिक श्रावक की लोकोपकार वृत्ति
सज्जन और दुर्जन के सम्बन्ध में व्यवहार १०. पाक्षिक श्रावक की विशेष प्रवृत्ति-धर्मभावना, स्वातन्त्र्य-प्रेम,
उदार-भावना, गृहिणी के प्रति कर्तव्य, सद्वचनप्रशंसा, निजनिन्दा, मित्रता, इत्यादि।
द्वितीय अध्याय ११. नैष्ठिक श्रावक का स्वरूप १२. प्रथम दर्शन प्रतिमा का लक्षण १३. सम्यग्दर्शन व उसका स्वरूप १४. सम्यग्दर्शन के दोषों का निरूपण
सम्यग्दर्शन के अष्टाङ्गों का निरूपण १. निःशंकित अङ्ग २. निःकांक्षित अङ्ग ३. निर्विचिकित्सा अङ्ग ४. अमूढदृष्टित्व अङ्ग ५. उपगूहन अङ्ग ६. स्थितिकरण अङ्ग ७. वात्सल्य अङ्ग ८. प्रभावना अङ्ग
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