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________________ नैष्ठिकाचार १५३ में भी भेद हुआ। इसी प्रकार होड़ लगाकर शर्त के साथ भी सदभिप्रायपूरक जो कार्य किए जाँयगे वे दोषोत्पादक नहीं हैं। किन्तु उसी प्रकार की शर्त लगाकर लोभादि अभिप्राय पूरे करने की इच्छा से या दूसरे को नीचा दिखाने के अभिप्राय से, अपने अहंकार को पोषण करने के अभिप्राय से, अपनी प्रशंसा हो अन्य की निन्दा हो जाय इस अभिप्राय से जो क्रीड़ाएँ की जाती हैं, राग-द्वेषवर्धन ही जिनका एकमात्र फल है वे द्यूत क्रीड़ा के अतिचार हैं। जुआ खेलनेवाले मनुष्यों के कर्तव्यों का समर्थन करना उनके कार्यों की प्रशंसा करना, जुआ के खेल देखने की उत्सुकता होना, उन्हें देखकर संतुष्ट होना, जुआ खेलने का उपदेश देना, उसके लिए दूसरों को प्रेरणा करना, जुआरियों को रुपया वगैरह उधार देकर जुआ खिलवाना, उन्हें स्थान की सुविधा देना इत्यादि सब कार्य उसी द्यूतव्रत को नष्ट करनेवाले अतिचार हैं जो कालान्तर में अनाचार के हेतु हैं। अतः इन सबका परिहार कर व्रत को निर्मल बनावे।११३। प्रश्नः-वेश्यात्यागातिचारस्य किं चिह्न विद्यते वद।। वेश्याव्यसन त्याग व्रत के अतिचार कौन हैं, कृपाकर हे गुरो! कहिए (अनुष्टुप्) वार्तालाप: तया सार्धं न कार्यो धार्मिकैर्जनैः। न वेश्यागीतनृत्यादि पश्येद् गच्छेन्न तद्गृहम् ।।११४।। वार्तेत्यादि:- वेश्याव्यसनव्रतिनः वेश्यानृत्यदर्शनं तद्गीतश्रवणं तगृहगमनं तया सह वार्तालापः तया सह व्यापारादिकञ्च न करणीयम्। यतस्तत्सर्वं तव्रतातिचार एव।११४। वेश्याव्यसन त्याग व्रत की रक्षा करनेवाले को चाहिए कि वह उसके प्रति प्रेरणादायक प्रत्येक कार्य से बचे। वे सब उस व्रत के अतिचार हैं। जैसे वेश्या का नृत्य देखना, उसका गाना सुनना, उसके घर जाना, उससे वार्तालाप करना, उसके साथ लेनदेन व्यापार आदि करना, उसे अपने गृह में रहने को स्थान देना, वेश्याव्यसनियों की संगति करना, उन्हें वेश्या के प्रति अनुरागी बनाना, उन्हें आर्थिक सहायता देना ये सब उस व्रत को नाश करने के हेतु हैं। चित्र के द्वारा या सिनेमा आदि के द्वारा भी वेश्यानृत्यदर्शन या वेश्यागीतश्रवण इस व्रत के लिए दोषास्पद है।११४। प्रश्नः-स्तेयातिचारचिह्नं किं विद्यते मे गुरो वद। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004002
Book TitleShravak Dharm Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmohanlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1997
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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