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श्री गणेश वर्णी दि०जैन संस्थान के कई उद्देश्यों में से एक प्रमुख उद्देश्य साहित्य प्रकाशन भी है। इसमें भी विशेषरूप से पूज्य श्रीगणेशप्रसाद वर्णी से सम्बन्धित रचनाओं (वर्णी साहित्य) का प्रकाशन मुख्य है। इसीलिए वर्णी जीवनगाथा के तीन भाग तथा वर्णीवाणी के चार भाग इसके द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। वर्णीजी द्वारा रचित हिन्दी टीका सहित 'समयसार' का प्रकाशन भी वर्णी ग्रन्थमाला से हुआ है। वर्णी ग्रन्थमाला से अबतक जो साहित्य प्रकाशित हुआ है वह अपनी मौलिक विशेषता को लिए हुए है। इसी दृष्टि को ध्यान में रखकर 'श्रावकधर्मप्रदीप' का प्रकाशन वर्णी ग्रन्थमाला की ओर से किया गया था।
श्रावकधर्मप्रदीप का प्रथम संस्करण २५ वर्ष पहले श्रीगणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला से छपा था जो कई वर्ष पूर्व समाप्त हो गया था। तभी से समाज की मांग थी कि श्रावकधर्मप्रदीप का द्वितीय संस्करण शीघ्र प्रकाशित कराया जाय। अतः इसका यह द्वितीय संस्करण श्री गणेश वर्णी दि. जैन संस्थान के अन्तर्गत वर्णी ग्रन्थमाला से किया गया है।
वर्णी संस्थान के अध्यक्ष स.सि. धन्यकुमार जी वर्णी संस्थान के कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं और संस्थान की प्रगति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। फलतः इस ग्रन्थ के प्रकाशन में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान है। संस्थान के उपाध्यक्ष श्री पं. फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री तथा सिद्धान्ताचार्य श्री पं. कैलाशचन्द्र जी से तो सदा ही सत्परामर्श और सहयोग प्राप्त होता ही रहता है। महावीर प्रेस के मालिक श्री बाबूलाल जी फागुल्ल ने इसके मुद्रण में लगन और तत्परता से कार्य किया है। श्री महादेव जी चतुर्वेदी ने प्रूफ संशोधन करके सहयोग दिया है। उक्त सब महानुभावों का हम हृदय से आभार मानते हैं।
उदयचन्द्र जैन संयुक्त मंत्री
डॉ० राजाराम जैन
मंत्री
श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन संस्थान, वाराणसी।
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