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________________ चिन्तनधारा की रूपरेखा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित सैद्धान्तिक लेखों में मुखरित हुई है। पण्डित जी की कृतित्त्व सूची में मुख्यतः 'श्रावकधर्मप्रदीप', अध्यात्म अमृत-कलश, प्रवचन सारोद्धार एवं कर्मबन्ध प्रक्रिया है। विद्वान्-टीकाकार की हैसियत से उन्होंने अपने ग्रन्थों में शास्त्रीय एवं सूक्ष्म सैद्धान्तिक मतों की प्रस्थापनाओं को सहज एवं बोधगम्य भाषा का वेश देकर जन-सामान्य को उपकृत किया है। पण्डित जी ने अपनी टीकाओं के माध्यम से मूल ग्रन्थ के महत्त्व को चौगुना कर दिया है। __ १९वीं शताब्दी का प्रथम दशक और जैन समाज पर विहंगम दृष्टि डालते हुए उस समय समाज की दुरावस्था का सजीव चित्रण किया। पण्डित जी ने आध्यात्मिक युग-विभूति आचार्य श्री शान्तिसागर द्वारा मुनि-व्रत की परम्परा के संचालन करने एवं जैन मुनियों ने अबाध विहार कर सकने के लिए, किये गये परम पुनीत कृत्यों के प्रति उनकी बार-बार वन्दना की है। उस समय समाज में मुनि-जन नहीं थे। जैन धर्म की शिक्षा-दीक्षा के लिए समुचित साधनों का अभाव था। पूर्व संस्कारवश जैन धर्म का पालन करते हुए अपनी भव्य सांस्कृतिक विरासत के पोषण और संवर्धन में जो व्यक्ति संलग्न थे, वे धन्य हैं। पण्डित जी ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय और यशस्वी योगदान के लिए पण्डित गोपालदास जी वरैया, ब्रशीतलप्रसाद जी, वैरिस्टर चम्पतराय जी, सर सेठ हुकमचन्द जी, सेठ मानिकचन्द्र जी, साहू शान्तिप्रसाद जी प्रभृति अनेक व्यक्तियों के प्रति भी अपनी स्मराणाञ्जलि अर्पित की, जिन्होंने विपरीत समय में समाज का पथ-प्रदर्शन किया। पण्डित जी ने धार्मिक, सामाजिक तथा शास्त्रीय ज्ञान के संवर्धन हेतु समूचे भारत में भ्रमण किया। भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली एवं आचार्य शान्तिसागर स्मारक ट्रस्ट, बम्बई के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित जैन विद्वत् संगोष्ठी बोरीबली, बम्बई में अध्यक्षता कर रहे पण्डित जी का दिनांक ७-८ सितम्बर १९८२ को समाजरत्न श्रावकशिरामणि साहू श्रेयांसप्रसाद जैन ने अभिनन्दन किया। संतशिरोमणि उपाध्याय विद्यानन्द जी की पुण्यमयी उपस्थिति में भारत के तत्कालीन गृह-मन्त्री माननीय श्री एस०व्ही०चव्हाण ने पण्डित जी को सन् ९२ के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से विभूषित किया। जैन समाज, अजमेर, कुंदकुंद भारती, दिल्ली, दि०जैन गजरथ महोत्सव, जबलपुर, जैन समाज, अमरपाटन, सतना, रीवॉ, कटनी, दमोह आदि अनेक नगरों में पण्डित जी के प्रति आदराजलि व्यक्त करने के लिए अभिनन्दन समारोह आयोजित किये गये। सतना जैन समाज के द्वारा आयोजित समारोह में पण्डितजी को साधुवाद-ग्रन्थ समर्पित किया गया। यह ग्रन्थ पण्डित जी की विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियों एवं धार्मिक अनुभवों का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। साधुवाद-ग्रन्थ की योजना को मूर्त रूप देने के दायित्व का निर्वाह १५० जैन/अजैन विद्वानों की उपस्थिति में डॉ० नन्दलाल जैन ने कुशलतापूर्वक किया। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री १०८ शान्तिसागर जी महाराज के सम्पर्क में पण्डित जी सन् १९२७-२८ में आयेतब से लगातार १९९५ तक ६७ वर्षों के दौरान अनेकानेक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004002
Book TitleShravak Dharm Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmohanlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1997
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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