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श्रावकधर्मप्रदीप
ज्ञात्वा जातिमदो नेति कार्यो मर्मविदारकः ।
श्रेष्ठजात्यां यतो जन्म स्यात्ते स्वर्मोक्षदा मतिः । । ४७ । । युग्मम् ।।
देवशास्त्रगुरूणामित्यादिः - सुगमम् । तात्पर्यमेतत्-मातृपक्षस्तु जातिः, पितृपक्षः कुलमिति निर्णयात् स्वमातुलस्य तत्सम्बंधात् तत्कुलस्य श्रेष्ठतायाः धनवत्तायाः विद्वत्तायाः प्रतिष्ठायाः बलवत्तायाः मदं न कुर्यात् । श्रेष्ठजातिषु तेषां प्राणिनां जन्म स्वत एव भवति ये भक्तितः सद्देवशास्त्रगुरूणां यथोचितां सेवां सविनयं कुर्वन्ति । लोके तेषां प्रतिष्ठापि संजायते। स्वजातेरूच्चतायाः मदेन तदहंकारेण लोकऽप्रतिष्ठा भवति हीनजातिषु जन्म च भवति । इति ज्ञात्वा अन्येषां मर्मच्छेदकानि जातिमदसूचकानि वचनानि न वक्तव्यानि । यदि एवं स्यात्तर्हि ते जन्मापि श्रेष्ठजात्यां स्यात् तथा स्वर्गेषु परम्परया मोक्षे च समुत्पादका बुद्धिस्ते स्यादेव नात्र संशयः । ४६ । ४७|
मातृपक्ष यदि विशुद्ध हो तो वह विशुद्ध जातिवाला मनुष्य है और यदि मातृपक्ष अविशुद्ध है तो वह जातिहीन है । मातृपक्ष की उच्चता का, उसकी धनवत्ता, बलवत्ता, प्रतिष्ठा आदि का अभिमान करना ही जाति सम्बन्धी मद है। उच्च जातिवाला होने पर भी मनुष्य को उस उच्चता का अहंकार न करना चाहिए। उच्च कुल या उच्च जाति में जन्म उन महापुरुषों को स्वतः प्राप्त होता है जो सद्देव, सद्धर्म तथा सद्गुरु की भक्ति और विनयपूर्वक यथोचित सेवा करते हैं। ऐसे सदाचारी जातिविशुद्ध पुरुष का कर्त्तव्य है कि वह ऐसे मर्मघातक वचन किसी से न कहे जिन वचनों से उसका जात्यभिमान प्रकट हो। अभिमानी पुरुष सदा पर का पराभव करता है और उससे ही दूसरे पुरुषों को मानसिक भयंकर दुःख होता है। इसलिए अभिमानी पुरुष हिंसक हो जाता है।
अभिमानी पुरुष को संसार के दूसरे मनुष्य उच्च न मानकर नीचा ही मानते हैं भले ही वह उच्च कुल या जाति का हो। अतः उच्चजाति का होकर भी वह लोक व्यवहार में जनता की निगाह में नीचा माना जाता है। इससे संक्लेश परिणामों में वृद्धि होती है और संक्लेश परिणाम पापबंधन का हेतु है तथा पाप से कुगति परिभ्रमण, करना होता है। अतः जो भव्य पुरुष स्वर्ग और परम्परा से मोक्ष को भी प्रदान करनेवाली धर्मबुद्धि को उत्पन्न करना चाहता है उसे चाहिए कि भूल कर भी जातिसम्बन्धी अहंकार न करे और न दूसरों को पराभूत करने का प्रयत्न करे । हीनजाति के मनुष्यों के साथ भी सद्व्यवहार रखे। उन्हें हीन समझकर उनका अनादर न करे। उनके सुधार के लिए केवल सदाचार का उपदेश करे। ऐसा करने वाले व्यक्तियों का ही श्रेष्ठ जाति में जन्म होता है । मद करनेवाले का जन्म तो नीच जाति में ही होता है । ४६ । ४७ ।
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