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श्री अर जिन स्तवन
१४१ इति निरुपमयुक्तशासनः
प्रियहितयोगगुणानुशासनः । अर जिन दमतीर्थनायक
स्त्वमिव सतां प्रतिबोधनाय कः ॥ १९ ॥
सामान्यार्थ-हे अर जिन ! आपका शासन अनुपम और युक्त है । आप प्रिय और हितकारी योगों और गुणोंके अनुशासक हैं तथा दमतीर्थ ( प्रवचन तीर्थ ) के नायक हैं। भव्य जीवोंको प्रतिबोध देने के लिए आपके समान और कौन समर्थ है ?
विशेषार्थ--यहाँ यह बतलाया गया है कि श्री अर जिनका शासन ( मत ) कैसा है । उनका शासन अनुपम है । उस शासनको तुलना अन्य किसी शासनसे नहीं की जा सकती है। अतः उपमारहित होने के कारण वह अनुपम है। तथा प्रमाण संगत होनेसे वह युक्त है। श्री अर जिनने जीवादि पदार्थोंका जो निरूपण किया है वह प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे सिद्ध होनेके कारण युक्तिसंगत और अबाधित है । श्री अर जिनके शासनमें प्रिय और हितकारी योगों और सम्यग्दर्शनादि गुणोंका अनुशासन भरा हुआ है । यहाँ योग शब्दसे प्रशस्त मन, वचन और कायके व्यापारका ग्रहण करना है। उनके प्रशस्त तीनों योगोंकी प्रवृत्ति भव्य जीवोंके लिए सुखदायक और हितकारक है । उन्होंने भव्य जीवोंके लिए भी यही उपदेश दिया है कि तीनों योगोंकी अप्रशस्त प्रवृत्तिको छोड़कर उनकी प्रशस्त प्रवृत्तिपर ही ध्यान देना चाहिए । इसी प्रकार सुखदायक और हितकारक सम्यग्दर्शनादि गुणोंका अनुशासन (उपदेश) भी श्री अर जिनके शासनमें विद्यमान है ।
उपयुक्त कथनका निष्कर्ष यह है कि श्री अर जिन प्रिय और हितकारी योगों और सम्यग्दर्शनादि गुणोंके अनुशासक हैं । इसके साथ ही वे दमतीर्थनायक हैं । कषायों और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना दम कहलाता है । तीर्थका अर्थ यहाँ प्रवचन है । यहाँ दम शब्द उपलक्षण है । अर्थात् दमके द्वारा गुप्ति, समिति, धर्म आदिका भी ग्रहण करना चाहिए। श्री अर जिनके प्रवचनमें दम, गुप्ति, समिति आदि कल्याणकारी बातोंका प्रतिपादन किया गया है । अतः वे दमतीर्थ (प्रवचन तीर्थ या आगम तीर्थ ) के प्रवर्तक या नायक हैं । ऐसे श्री अर जिन ही भव्य जीवोंको प्रतिबोध देनेके लिए सर्वथा समर्थ हैं, अन्य दूसरा कोई समर्थ नहीं है।
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