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दर्शन और परिक्रमा
और आगामी कालमें सद्गति हो। कल्पना करो-यदि जैनियोंमें पापका परिणाम न होता तो वे भगवान् अर्हन्की उपासना क्यों करते ? अतः बेटा ! तुम अभी बालक हो, किसीकी निन्दा मत करना, अपने धर्मको पालो, अपनी वृत्ति निर्मल करो, वही तुमको पार लगावेगी। हमारे सिद्धान्तोंमें भी कहा है-'ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः'-ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं हो सकती। फिर भी इस रांड़ आजीविकाके लिये बाह्यमें नाना वेष करना पड़ता है। विशेष कुछ नहीं, तुम जाओ, हम तुम्हें आशीर्वाद देते हैं तुम्हारी यात्रा सानन्द होगी।
- दर्शन और परिक्रमा हम दोनों वहाँसे चले और सायंकालकी गाड़ीपर सवार होकर पटना-सुदर्शन सेठके निर्वाणस्थानपर पहुँच गये। धर्मशालामें ठहरे, प्रातःकाल स्नान कर श्रीसुदर्शन निर्वाणक्षेत्रकी वन्दना की। मध्याह्नमें भोजनादिसे निवृत्त होकर गिरेटीके लिये चल दिया। बीचमें मधुपुर गाड़ी बदलते हुए गिरेटी पहुंचे। मन्दिरोंके दर्शन कर अपूर्व आनन्द पाया। यहाँ पर श्रीकिशोरीलाल रामचन्द्रजी सराबगी बड़े सज्जन व्यक्ति हैं। यहाँसे चलकर बड़ाकर आये, फिर श्रीशिखरजी पहुँच गये।
श्रीपार्श्वप्रभुकी निर्वाणभूमिका साधारण दर्शन तो गिरेटीसे ही हो गया था, पर बड़ाकर पहुंचने पर विशेष दर्शन होने लगा। ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते थे, त्यों-त्यों स्पष्ट दर्शन होते जाते थे। श्री पार्श्वप्रभुके मन्दिर पर सर्व प्रथम दृष्टि पड़ती थी। चिरकी पहुँचने पर सानन्द दर्शन हुए और मनमें ऐसी उमंग आई कि यदि पंख होते तो उड़कर इसी क्षण प्रभुके दर्शन करते। चित्तमें यही भावना उत्पन्न हो रही थी कि कब प्रभुके चरणोंका स्पर्श करें। पैर उतावलीके साथ आगे बढ़ रहे थे, एक-एक क्षण दिन-सा प्रतीत होता था।
अन्तमें मधुबन पहुँच गये, तेरापन्थी धर्मशालामें आश्रय लिया। प्रातः काल शौचादि क्रियासे निवृत्त होकर श्रीपार्श्वप्रभुके दर्शन कर परम आनन्दका अनुभव किया। बादमें बीसपन्थी कोठीके दर्शन कर स्थान पर आये और भोजनादिसे निवृत्त हो सो गये। तीन बजे उठकर सामग्री तैयार की और वस्त्रप्रक्षालन कर सूखनेके लिये डाल दिये। सायंकाल भोजनोपरान्त बाहर चबूतरा के ऊपर सामायिक क्रिया करके सो गये। रात्रिके ६ बजेसे लेकर १० बजे तक अखण्ड वर्षा हुई। मन आह्लादसे भर गया और हम दोनों पार्श्वप्रभुके गुण गाने लगे। हृदयमें इस बातकी दृढ़ श्रद्धा हो गई कि अब तो पार्श्वप्रभुकी
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