________________
मेरी जीवनगाथा
अध्ययनके बाद कदापि ऐसी अविनय नहीं करना....इत्यादि तर्क-वितर्कके बाद मैं पढ़नेके लिए चला जाता था।
यहाँ पर श्रीमान् पं. नन्दरामजी रहते थे जो कि अद्वितीय हकीम थे। हकीमजी जैनधर्मके विद्वान् ही न थे, सदाचारी भी थे। भोजनादिकी भी उनके घरमें पूर्ण शुद्धता थी। आप इतने दयालु थे कि आगरेमें रहकर भी नाली आदिमें मूत्र क्षेपण नहीं करते थे। एक दिन पण्डितजीके पास पढ़नेको जा रहा था, दैवयोगसे आप मिल गये। कहने लगे-कहाँ जाते हो ?' मैंने कहा'महाराज ! पण्डितजीके पास पढ़ने जा रहा हूँ।' 'बगलमें क्या है ?' मैंने कहा-'पाठ्य पुस्तक सर्वार्थसिद्धि है। आपने मेरा वाक्य श्रवण कर कहा-'पञ्चम काल है, ऐसा ही होगा, तुमसे धर्मोन्नतिकी क्या आशा हो सकती है और पण्डितजीसे क्या कहें ?' मैंने कहा-महाराज निरुपाय हूँ।' उन्होंने कहा-'इससे तो निरक्षर रहना अच्छा। मैंने कहा-महाराज ! अभी गर्मीका प्रकोप है पश्चात् यह अविनय न होगी।' उन्होंने एक न सुनी और कहा-'अज्ञानीको उपदेश देनेसे क्या लाभ ?' मैंने कहा-'महाराज ! जब कि भगवान् पतितपावन हे और आप उनके सिद्धान्तोंके अनुगामी हैं तब मुझ जैसे अज्ञानियोंका भी उद्धार कीजिये । हम आपके बालक हैं, अतः आप ही बतलाइये कि ऐसी परिस्थितिमें मैं क्या करूँ ?' उन्होंने कहा-'बातोंके बनाने में तो अज्ञानी नहीं, पर आचारके पालने में अज्ञान बनते हो। ऐसी ही एक गलती और भी हो गई। वह यह कि मथुरा विद्यालयमें पढ़ानेके लिये श्रीमान् पं. ठाकुरप्रसादजी शर्मा उन्हीं दिनों यहाँ पर आये थे और मोतीकटराकी धर्मशालामें ठहरे थे। आप व्याकरण और वेदान्तके आचार्य थे, साथमें साहित्य और न्यायके प्रखर विद्वान् थे। आपके पाण्डित्यके समक्ष अच्छे-अच्छे विद्वान् नतमस्तक हो जाते थे। हमारे श्रीमान् स्वर्गीय पं. बलदेवदासजीने भी आपसे भाष्यान्त व्याकरणका अभ्यास किया था।
आपके भोजनादिकी व्यवस्था श्रीमान् वरैयाजीने मेरे जिम्मे कर दी। चतुर्दशीका दिन था। पण्डितजीने कहा 'बाजारसे पूड़ी शाक लाओ।' मैं बाजार गया। और हलवाईके यहाँसे पूड़ी तथा शाक ले आ रहा था कि मार्गमें दैवयोगसे वही श्रीमान् पं. नन्दरामजी साहब पुनः मिल गये। मैंने प्रणाम किया। पण्डितजीने देखते ही पूछा-'कहाँ गये थे ? मैंने कहा-'पण्डितजीके लिये बाजारसे पूड़ी शाक लेने गया था। उन्होंने कहा "किस पण्डितके लिये ?' मैंने उत्तर दिया-'हरिपुर जिला इलाहाबादके पण्डित श्री ठाकुरप्रसादजीके लिये,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org