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मेरी जीवनगाथा
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एक दिन भोजन कराया और पच्चीस हजार बोर्डिंग बनने के लिये दिये। दस हजार श्री गप्पूलालजी और सात हजार श्रीफूलचन्द्र बुद्धूमलजी सेठसे भी मिले। इसी प्रकार अन्य व्यक्तियोंने भी सहयोग किया। आशा है अब शीघ्र ही बोर्डिंग बन जावेगा । यहाँ उसकी बड़ी आवश्यकता है। श्रीयुत सेठ बैजनाथजी सरावगी भी कलकत्तासे यहाँ पधारे। उन्होंने बोर्डिंग बनवानेमें यहाँकी समाजको अधिक प्रेरणा दी। पच्चीससौ रुपया स्थायी फण्डमें स्वयं दिये तथा पाँचसौ रुपया गोपाचलकी मूर्तियोंके उद्धार कार्यमें प्रदान किये।
श्रीयुत हीरालालजी और गणेशलालजीके प्रबन्धसे यहाँ मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ और गोपाचलके अञ्चलमें मेरे लगभग सात माह सानन्द व्यतीत हुए।
मुरारसे अगहन वदि ४ सं. २४७५ को देहलीकी ओर प्रस्थान किया। प्रस्थानके समय पं. राजेन्द्रकुमारजी, पं. फूलचन्द्रजी, पं. महेन्द्रकुमारजी, पं. चन्द्रमौलिजी, पं. मुन्नालाजी समगौरया तथा श्यामलालजी पाण्डवीय आदिके भाषण हुए। मुरारसे चल कर ग्वालियर आये। पानी बरसनेके कारण यहाँ तीन दिन तक ठहरना पड़ा। श्री क्षुल्लक पूर्णसागरके प्रयत्नसे ही यहाँ पाठशालाके लिये पाँच हजारका नगद चन्दा हो गया और एक महाशयने पन्द्रह हजारकी कीमतका मकान देना स्वीकृत किया तथा एक वृद्ध माताने अपनी ही दुकान पाठशालाको देनेका निश्चय प्रकट किया। यहाँ श्रीपन्नालालजी अग्रवाल बहुत ही उत्साही व्यक्ति हैं।
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