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लश्करकी ओर
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अनादिकालसे इस आत्माका अनात्मीय पदार्थोंके साथ संसर्ग चला आ रहा है और संसर्गके एक क्षेत्रावगाही होनेसे उन दोनोंमें अभेदबुद्धि हो रही है । जो चेतन पदार्थ है वह तो दीखता नहीं और जो अचेतन पदार्थ है वही दिखता है । पाँच इन्द्रियाँ इसके ज्ञानकी साधक हैं, उनके द्वारा स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द इनका ही तो बोध होता है । यद्यपि जाननेवाला जीव द्रव्य है, परन्तु वह इतना निर्बल हो गया है कि बिना पौद्गलिक द्रव्येन्द्रियके आलम्बनके देखनेमें असमर्थ रहता है । जिनकी द्रव्येन्द्रिय विकृत हो जाती हैं वह नहीं जान सकता। जैसे आँख फूट जावे तो अभ्यन्तर भावेन्द्रियका सद्भाव रहनेपर भी ज्ञानोत्पत्ति नहीं होती । अथवा जिनकी बाह्य नेत्रेन्द्रिय दुर्बल हो जाती है वह चश्माका आश्रय लेकर देखते हैं । यथार्थमें देखता नेत्र ही है, परन्तु चश्माके आश्रय बिना बाह्य नेत्र देखनेमें असमर्थ रहता है । इसी प्रकार द्रव्येन्द्रियके विकृत होनेपर आभ्यन्तर इंद्रिय स्वकीय कार्य करनेमें असमर्थ रहती है। इसी तरह ज्ञाता-द्रष्टा आत्मा यद्यपि स्वयं ज्ञायक हैं, परन्तु अनादिकालीन कर्मोंसे मलीमस होनेके कारण अपने आपको वेदन करनेमें असमर्थ हैं, अतः मन इन्द्रियके आश्रय बिना न तो अपनेको जान सकता है और न 'यह उपादेय है, यह हेय है' इसे भी जाननेमें समर्थ रहता है । अब यदि आत्मा संज्ञी पञ्चेन्द्रिय अवस्थाको प्राप्त हुआ है तो अपने स्वरूपको जानो, देखो तथा उसीमें रम रहो । इन परपदार्थोंके सम्पर्कसे बचो, क्योंकि इनके संसर्गसे ही चतुर्गति भ्रमण है । यह निश्चित बात है कि जिस पदार्थमें तुम्हारी आत्मीय बुद्धि होगी, कालान्तरमें वही तो मिलेगा । जाग्रदवस्थामें जिस पदार्थका विशेष संसर्ग रहता है, स्वप्नावस्था में वही पदार्थ प्रायः सम्मुख आ जाता है। यह क्या है ? संस्कार ही तो है । आपको सम्यक्प्रकार यह विदित है कि जब बालक उत्पन्न होता है तब माँका स्तनपान करता है। उसे किसने शिक्षा दी कि स्तनको इस प्रकार चूसो । यही संस्कार जन्मान्तरका साधक है। यही जीवको जतानेवाला है - जिसमें यह संस्कार है वही जीव है । ज्ञानका आश्रय है । यही जीवमें चेतनाका चमत्कार है । यही इसे इतर द्रव्योंसे भिन्न करनेवाला असाधारण गुण है । यदि यह न होता तो संसारकी उस व्यवस्थाको, जो कि आज बन रही है कौन जानता ? आत्मामें एक ज्ञान ही गुण ऐसा है जो कि अपने स्वरूपको दर्शाता है और अन्य पदार्थोंकी व्यवस्था करता है। इतना ही उसका काम है कि वह पदार्थोंको जान लेवे। यह पदार्थ हेय है, यह उपादेय है, यह उपेक्षणीय है, यह उसका काम
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