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बुन्देलखण्डका पर्यटन
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स्वयं निजके लिए और एक हिस्सा धर्मकार्यों के लिए रखूगा। हम सबने वरयाजी के निर्णयकी सराहना की। मध्याह्नके दो बजे से साढ़े चार बजे तक एक आमसभा हुई, जिसमें भाषणों के अनन्तर वरयाजीका निर्णय सबको सुनाया गया। लोगों से पता चला कि उनके पास दो-तीन लाख की सम्पत्ति है। रात्रिको एक नवीन पाठशाला का उद्घाटन हुआ।
___ कुम्हैड़ी के बाद गुड़ा और नारायणपुर होते हुए श्री अतिशय क्षेत्र अहार पहुँचा। यहाँ अगहन सुदी बारस से चौदह तक क्षेत्र का वार्षिक मेला था। टीकमगढ़से हिन्दी साहित्यके महान् विद्वान श्री बनारसीदासजी चतुर्वेदी तथा बाबू मिथिलाप्रसाद जी बी. ए., एल. एल. बी., शिक्षामंत्री, श्री कृष्णानन्द जी गुप्त तथा बाबू यशपालजी जैन आदि महानुभाव भी पधारे थे। अहार क्षेत्र का प्राकृतिक सौन्दर्य अवर्णनीय है। वास्तव मे पहाड़ों के अनुपम सौन्दर्य, बाग-बगीचों, हरे-भरे धानके खेतों एवं मीलों लम्बे विशाल तालाबसे निकलकर प्रवाहित होनेवाले जल प्रवाहोंसे अहार एक दर्शनीय स्थान बन गया है। उस पर संसारको चकित कर देनेवाली पापट जैसे कुशल कारीगर की कर-कलासे निर्मित श्री शान्तिनाथ भगवान की सातिशय प्रतिमाने तो वहाँ के वायुमण्डल को इतना पवित्र बना दिया है कि आत्मा में एकदम शान्ति आ जाती है।
मिडिल स्कूल खोलने के लिए यदि जैन समाज आधा व्यय देना स्वीकार करे तो आधा राज्य की ओर से दिलाने का आश्वासन श्री बाबू मिथिला प्रसाद जी शिक्षामंत्री ने दिया। यहाँ की संस्था को छह हजार रुपया तथा क्षेत्र को पाँच सौ रुपया की नवीन आय हुई। मेला में जैन-अजैन जनता की भीड़ लगभग दस हजार थी। तीन दिन तक खूब चहल-पहल रही। यहाँ के मंत्री श्री बारेलाल वैद्य पठा हैं, जो उत्साही जीव हैं। प्राठशाला में पं. प्रेमचन्द्रजी अध्यापक हैं। श्री बनारसीदास जी चतुर्वेदी तथा यशपाल जी के प्रयत्न से प्राचीन प्रतिमाओं को रखने के लिए एक सुन्दर भवन बन गया है। परवारभूषण ब्र. फतेचन्द्रजी नागपुरवालोंने भी क्षेत्र की उन्नति में काफी काम किया है।
यहाँ से चलकर पठा आया। यहाँ पर सेठ चिम्मनलालजी ब्रह्मचारी हैं, जो सम्पन्न हैं। परन्तु गृहवास से विरक्त हैं। यहाँ आपके धर्मगृह में रहे। एक दिन बाद पपौराजी आ गया। इस क्षेत्र की चर्चा पहले विस्तार से कर आए हैं। यहाँ दो दिन निवास कर टीकमगढ़ आया। यहाँ अनेक जिनालय और लगभग
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