SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुन्देलखण्डका पर्यटन 403 बार पंचकल्याणक किये हैं और हजारों रुपये विद्यादान में लगाए हैं। तीर्थ यात्रा में आपकी अच्छी रुचि है। यहाँ से चलकर दलपतपुर आ गए। आनन्दसे दिन बीता। यहाँ पर स्वर्गीय जवाहर सिंघई के भतीजे और नाती बहुत ही योग्य हैं। यहाँ एक पाठशाला भी चलती है। दलपतपुरसे दुलचीपुर और वहाँ से बरायठा आए। यहाँ चालीस घर गोलापूर्व समाज के हैं। कई घर अत्यन्त सम्पन्न हैं। सेठ दौलतराम घिया बहुत योग्य हैं। पाठशाला में पं. पद्मचन्द्रजी विशारद अध्यापक हैं। ___ यहाँ जो पुलिस दरोगा हैं वे जाति के ब्राह्मण हैं। बहुत ही सज्जन हैं। आपने बहुत ही आग्रह किया कि हमारे घर भोजन करिए। परन्तु अभी हम लोगों में इतनी दुर्बलता है कि किसी को जैनी बनाने में भय करते हैं। आपने प्रसन्न होकर कहा कि हम दस रुपया मासिक देते हैं। आपकी जहाँ इच्छा हो वहाँ व्यय करें। जब मैंने बरायठासे प्रस्थान किया तब चार मील तक साथ आये। रात्रिको हंसेरा ग्राम में बस रहे। वहाँ पर हमारी जन्मभूमि के रहने वाले हमारे लंगोटिया मित्र सिंघई हरिसिंहजी आ गए। बाल्यकालकी बहुत-सी चर्चा हुई। प्रातःकाल मड़ावरा पहुँच गए। लोगों ने आतिथ्य सत्कार में बहुत प्रयास किया। पश्चात् श्री नायक लक्ष्मणप्रसादजी के अतिथि-गृह में ठहर गया। साथ में श्री चिदानन्दजी, श्री सुमेरचन्द्रजी भगत तथा श्री क्षुल्लक क्षेमसागर जी महाराज थे। यहीं पर सागर से समगौरया जी आ गए। उनकी जन्मभूमि यहाँ पर है। हम यहाँ तीन दिन रहे। यहीं पर एक दिन तीन बजे श्रीमान पं. बंशीधरजी इन्दौर आ गये आपका रात्रिको प्रवचन हुआ, जिसे श्रवण कर श्रोता लोग मुग्ध हो गए। मैं तो जब-जब वे मिलते हैं तब-तब उन्हीं के द्वारा शास्त्र प्रवचन सुनता हूँ। विशेष क्या लिखू ? आप जैसा मार्मिक व्याख्याता दुर्लभ ही है। आपका विचार महरौनी गाँव के बाहर उद्यान में शान्तिभवन बनाने का है, परन्तु महरौनीवाले अभी उतने उदार नहीं। वे चाहते हैं कि प्रांत से बन जावे, परन्तु जंब तक स्वयं बीस हजार रुपया का स्थायी प्रबन्ध न करेंगे तब तक अन्यत्रसे द्रव्य मिलना असम्भव है। यहीं पण्डितजी की जन्मभूमि है। यदि आपकी दृष्टि इस ओर हो जावे तो अनायास कार्य हो सकता है, परन्तु पञ्चमकाल है। ऐसा होना कुछ कठिन-सा प्रतीत होता है। मड़ावरा में पण्डितजी तथा समगौरया जी के अथक परिश्रम से पाठशाला का जो चन्दा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy