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मेरी जीवनगाथा
रहे । यहाँसे तीन मील चलकर सड़वा आये | सतीशचन्द्रके यहाँ भोजन हुआ। यहाँसे पाँच मील चलकर द्रोणगिरि क्षेत्रपर पहुँच गये। मलहराके छात्रोंने स्वागत किया। छात्रोंमें चि. बिहारीलाल और लक्ष्मणप्रसाद नामक दो छात्र बहुत ही सुशील और होनहार दिखे । साथमें पं. मोहनलालजी प्रधानाध्यापक गुरुकुल मलहरा और पं गोरेलालजी प्रधानाध्यापक पाठशाला द्रोणगिरि थे । सागरमें शिक्षण-शिविर
मेला का समय था, अतः सिंघई कुन्दनलालजी तथा बालचन्द्रजी मलैया पहलेसे ही मौजूद थे। सागरसे विशेष जनता नहीं आई थी । मलहरासे सिंघई वृन्दावनदासजी नहीं आ सके, इससे मेरे मनमें कुछ अशान्ति रही । इस प्रान्तमें यह आदमी बहुत ही निपुण है । दान देनेमें शूर है। यहाँ पर उनका बनवाया एक सरस्वतीभवन है । अपने जीवनमें उन्होंने एक गजरथ भी चलाया है, परन्तु साथमें यह बात है कि मामूली आदमीके बहकावे में नहीं आते, इसलिये लोग उनसे प्रेम नहीं करते। आपके दो सुपुत्र हैं। मलहरासे श्री मोदी बालचन्द्रजीके सुपुत्र श्री बाबूलालजी भी आये जो कि बहुत ही सुयोग्य व्यक्ति और संस्थाके शुभचिन्तक हैं, अतः आप द्रोणप्रान्तीय जैन गुरुकुलमलहरा और पाठशाला द्रोणगिरिके उपमन्त्री चुने गये । स. सिं. सोनेलालजीके सुपुत्र श्री जवाहरलालजी भी आये, जो कि बहुत ही योग्य समाज-सेवक हैं। मेलेके समय क्षेत्र और पाठशालाके कार्योंके सिवाय इन्होंने मेलेकी व्यवस्थामें भी पूर्ण सहयोग दिया । घुवारासे बहुत जनता आई । वैद्यरत्न सिंघई दामोदरदासजी वैद्य भी आये, जो कि बहुत चतुर और कवि हैं। आसपास की जनताकी उपस्थिति अच्छी थी। दूसरे दिन पाठशालाका वार्षिकोत्सव हुआ । क्षुल्लक क्षेमसागरजीका केशलोंच हुआ। अनन्तर श्री बालचन्द्रजी मलैयाने, जो कि शिक्षा विभागके मंत्री हैं, पाठशालाकी रिपोर्ट सुनाई तथा पाठशालाकी रक्षाके लिए अपीलकी । मैने समर्थन किया। दस हजार एक रुपया श्री सिंघई कुन्दनलालजीने एकदम प्रदान किया तथा इतना ही श्रीबालचन्द्रजी मलैयाने दिया । सिंघई वृन्दावनजीके न होने पर भी उनके सुपुत्रने दो हजार कहा। मैंने कहा पाँच हजार कह दीजिये। उसने हँसकर स्वीकारता दी। इसके बाद पाँच सौ एक रुपया स. सि. दामोदरदास जी घुवारावालोंने दिये तथा फुटकर चन्दा भी तीन हजार रुपयाके लगभग हो गया। पश्चात् सन्ध्या समय सन्निकट होनेसे यह कार्य स्थगित हो गया। अन्तमें रात्रि आ गई। शास्त्र - प्रवचन पण्डित गोरेलालजीका हुआ, जो कि
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