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यह ईसरी है
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करेंगे।'
आपने अपने निर्वाहके लिये एक मकानका किराया और पैंसठ सौ रुपया नकद रक्खे हैं। आप प्रायः सालमें छ: मास मेरे सम्पर्कमें रहते हैं। आपकी प्रकृति बहुत ही उदार है।
साथ ही इन दोनों भाइयोंने आठ वर्षकी अवस्थासे ही प्रतिदिन अपने पिताजीके साथ श्रीभगवत्पूजन और शास्त्रस्वाध्याय करना प्रारम्भ किया था, जिसका संस्कार बराबर बना चला आ रहा है। इन्होंने सात व्यसन और रात्रिभोजनका भी त्याग कर दिया है तथा ये मूलगुणोंका बराबर पालन करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि ये सदाचारी गृहस्थ हैं और निरन्तर दानधर्म करते रहते हैं।
त्यागीवर्गमें पं. मौजीलालजी सागर बहुत ही विरक्त और सुबोध हैं। आपने त्यागी लोगोंके लिये एक अच्छी कोठरी बनवा दी है। एक कोठरीमें संगमर्मरका फर्श बाबू गोविन्दलालजी गयावालोंने जड़वा दिया है। पं. पन्नालालजी मैंनेजर निरन्तर आश्रमकी देख-भाल करते हैं। गयावाले सेठी चम्पालालजी भी समय-समयपर यहाँ आते हैं। श्रीखेतसीदासजी गिरिडीहवाले भी कभी-कभी लगातार एक मास पर्यन्त रहककर धर्मसाधनमें उपयोग लगाते हैं। गिरिडीहवाले रामचन्द्र बाबू भी यहाँपर सकुटुम्ब रहकर धर्मसाधन करते हैं। नवादासे भी श्रीलक्ष्मीनारायण सेठी यहाँ आकर धर्मसाधन करते थे। सासनीवाले सेठ भी यहाँ आकर महीनों धर्मसाधन करते थे। और भी बहुतसे भाई यहाँ आकर धर्शसाधन करनेमें अपना सौभाग्य समझते हैं।
यहाँपर श्रीयुत् वैजनाथजी सरावगी राँचीवालोंने एक बहुत ही सुन्दर धर्मायतन बनवाया है। उसमें एक मुनीम बराबर रहता है। एक बाग भी उसमें लगाया है तथा प्राचीन चैत्यालयको मन्दिररूपमें परिवर्तित कर दिया है। मन्दिरमें संगमर्मरका फर्श जड़वा दिया है। इतना ही नहीं, आप प्रायः निरन्तर आया करते हैं। प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशीके उपवासके बाद त्यागियोंकी पारणा आपहीकी ओरसे होती है। इसके अतिरिक्त भी आप हीकी ओरसे आश्रम के लिये पर्याप्त सहायता मिलती है। पार्श्वनाथ शिक्षामन्दिरके आप सभापति भी हैं।
यह शिक्षामन्दिर पहले कोडरमा था; परन्तु श्रीमान् पं. कस्तूरचन्द्रजीने उसे ईसरीमें परिवर्तित कर दिया है। पं. कस्तूरचन्द्रजी उसकी उन्नतिमें
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