________________
गिरिराजकी पैदल यात्रा
327
रीवाँ पहुँचे। यहाँ पर दो मन्दिर हैं। श्रीशान्तिनाथ स्वामीकी प्रतिमा अतिमनोज्ञ है। धर्मशाला भी अच्छी है। एक मन्दिरकी दहलान श्रीमहाराजकी रानी साहबाने बनवा दी है।
यहाँ तीन दिन रहकर मिर्जापुरके लिये चल दिये । यहाँसे मिर्जापुर सौ मील है। बीचमें कहीं जैनोंका घर नही, अतः भोजन का प्रबन्ध स्वयं करते थे। बारह दिनमें मिर्जापुर पहुँच गये। मार्ग की शोभा अवर्णनीय है। वास्तवमें मिर्जापुर रम्य जिला है। यहाँ पर जैन मन्दिर अतिसुन्दर हैं। समैयोंका एक
चैत्यालय भी है। वे लोग बहुत सज्जन हैं, परन्तु मन्दिर में नहीं आते। मैं उनके यहाँ भोजन करनेके लिए भी गया। उनके घरोंमें धार्मिक प्रवृत्ति है। यहाँ पर उन हीरालाल सिंघईका घर हैं जिन्होंने कि कटनीका बोर्डिंग. बनवाया था। अब उनके नाती हैं जो कई भाई हैं, परन्तु इनकी धर्ममें उतनी रुचि नहीं जितनी कि इनके बाप-दादोंकी थी। यहाँ पर गंगाजीका घाट बहुत सुन्दर बना हुआ है। गंगाके घाट पर ही विन्ध्यवासिनी देवी का मन्दिर है। बहुत दूर-दूरसे भारतवासी आते हैं, परन्तु खेद इस बात का है कि यात्रीगण पण्डोंकी बदौलत देवीको जगदम्बा कहकर भी उनके समक्ष निर्मम छागोंका बलिदान कर देते हैं। संसारमें कषायोंके वशमें जो जो अनर्थ हो, अल्प हैं।
यहाँसे चलकर चार दिनमें वाराणसी-काशी पहुँच गये और पार्श्वनाथके मन्दिरमें भेलूपुर ठहर गये। यहाँपर दो धर्मशालाएँ हैं- एक पंचायती है जिसमें आधी श्वेताम्बरोंकी और आधी दिगम्बरोंकी है। साँझेकी धर्मशाला होने से यात्रीगणोंको कोई सुविधा नहीं। एक धर्मशाला खड़गसेन उदयराजकी भी है, जिसका बहु भाग दुकानदारोंको किरायेपर दे दिया है। मन्दिर दो हैं, दोनों ही उत्तम हैं।
यहाँ भदैनीमें बाबू देवकुमारजी आरा निवासीका बनवाया हुआ एक सुन्दर घाट है, जिसका नाम प्रभुघाट है। घाटके ऊपर एक बड़ा सुन्दर महल है. जिसकी लागत कई लाख रुपये होगी। इसीमें स्याद्वाद विद्यालय है। यह भी उन्होंने स्थापित किया था और उसकी सहायता आज तक उनके सुपुत्र निर्मलकुमारजी रईस बराबर करते रहते हैं। आप बहुत ही सज्जन हैं। विद्यालय के ऊपर एक सुन्दर छत है, जिसमें हजारों आदमी बैठ सकते है। बीच में एक सुन्दर मन्दिर है, जिसके दर्शन करने से महान् पुण्यका बन्ध होता है। मन्दिर के बाद एक छोटा आँगन है। वहाँसे बाहर जाने का मार्ग है। उसके
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org