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________________ मेरी जीवनगाथा 306 होगा।' वर्णीजी बोले-'तुम्हारा-सा दुर्बोध आदमी मैंने नहीं देखा। देखो, हमारी बात मानो आज कहीं मत जाओ। मैंने कहा-आज तो इतने दिन बाद अवसर मिला है और आज ही आप रोकते हैं।' कुछ देर तक हम दोनोंमें ऐसा विवाद चलता रहा। अन्तमें मैं साढ़े तीन बजे जलपान कर ग्रामके बाहर चला गया। एक बाग में जाकर नाना विकल्प करने लगा-'हे प्रभो ! हमने जहाँ तक बनी बाईजीकी सेवा की, परन्तु उन्हें आराम नहीं मिला। आज उनका स्वास्थ्य कुछ अच्छा मालूम होता है। यदि उनकी आयु पूर्ण हो गई तो मुझे कुछ नहीं सूझता कि क्या करूँगा? इन्हीं विकल्पों में शाम हो गई, अतः सामायिक करके कटराके मन्दिर में चला गया। वहाँ पर शास्त्र-प्रवचन होता था, अतः ६ बजे तक शास्त्र श्रवण करता रहा। साढ़े नौ बजे बाईजी के पास पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि कोई तो समाधिमरण पाठ पढ़ रहा है और कोई ‘राजा राणा छत्रपति' पढ़ रहा है। मैं एकदम भीतर गया और बाईजीका हाथ पकड़ कर पूछने लगा-'बाईजी सिद्ध परमेष्ठीका स्मरण करो' बाईजी बोली-भैया ! कर रहे हैं, तुम बाहर जाओ।' मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई कि अब तो बाईजी की तबियत अच्छी है। मैं सानन्द बाहर आ गया और उपस्थित महाशयोंसे कहने लगा कि 'बाईजी अच्छी हैं। सब लोग हँसने लगे। मैं जब बाहर आया तब बाईजीने मोतीलालजीसे कहा कि 'अब हमको बिठा दो।' उन्होंने बाईजीको बैठा दिया। बाईजीने दोनों हाथ जोड़े 'ओं सिद्धाय नमः' कह कर प्राण त्याग दिये। वर्णीजीने मुझे बुलाया-'शीघ्र आओ' | मैंने कहा-'अभी तो बाईजीसे मेरी बातचीत हुई। मैंने पूछा था-सिद्ध भगवान्का स्मरण है। उत्तर मिला था हाँ, तुम बाहर जाओ। अब मैं उनकी आज्ञाका उल्लंघन नहीं कर सकता था।' वर्णीजीने कहा कि 'आज्ञा देनेवाली बाईजी अब कहीं चलीं गई ?' क्या ऊपर गई हैं ?' वर्णीजी बोले-'बड़े बुद्ध हो। अरे वह तो समाधिमरण कर स्वर्ग सिधार गई। जल्दी आओ उनका अन्तिम शव तो देखो कैसा निश्चल आसन लगाये बैठी हैं ?' मैं अन्दर गया, सचमुच ही बाईजीका जीव निकल गया था ? सिर्फ शव बैठा था। देखकर अशरण भावनाका स्मरण हो आया 'राजा राणा छत्रपति हाथिन के असवार। मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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