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________________ बिल्लीकी समाधि 277 रुपया ही देना थे। यदि मेरा उपकार करना था तो एक रुपया स्वतन्त्र देते तथा दो आनाके लिए बेईमान न बनना पड़ता। अब भविष्य में ऐसी भूल न करना। जितना सुख आपको एक रुपया देनेका नहीं हुआ उतना दुःख इस दो आनाकी भूलका होगा। व्यवहारमें यथार्थ बुद्धिसे काम लो। यों ही आवेगमें आकर न ठगा जाओ तथा दानकी पद्धतिमें योग्य-अयोग्यका विचार अवश्य रक्खो। आशा है अब ऐसी भूल न करोगे।' बिल्लीकी समाधि सागरकी ही घटना है। हम जिस धर्मशालामें रहते थे उसमें एक बिल्लीका बच्चा था। उसकी माँ मर गई। मैं बच्चेको दूध पिलाने लगा। बाईजी बोलीं-'यह हिंसक जन्तु है। इसे मत पालो।' मैं बोला-'इसकी माँ मर गई, अतः दूध पिला देता हूँ। क्या अनर्थ करता हूँ ?' बाईजी बोली।-'प्रथम तो तुम आगमकी आज्ञाके विरुद्ध काम करते हो। दूसरे संसार है। तुम किस-किस की रक्षा करोगे?' मैं नहीं माना। उसे दूध पिलाता रहा। जब वह चार मासका हुआ तब एक दिन उसने एक छोटासा चूहा पकड़ लिया। मैंने हरचन्द कोशिश की कि वह चूहेको छोड़ देवे पर उसने न छोड़ा। मैंने उसे बहुत डरवाया, पर वह चूहा खा गया। इस घटनासे, जब मैं आता था वह डरकर भाग जाता था, परंतु जब बाईजी भोजन करती थीं तब वह आ जाता था और जब तक बाईजी उसे दूध रोटी न देती तब तक नहीं भागता था। बाईजीसे उसका अत्यन्त परिचय हो गया। जब बाईजी बरुआसागर या कहीं अन्यत्र जाती थीं तब वह एक दिन पहलेसे भोजन छोड़ देता था और जब तांगा पर बैठकर स्टेशन जाती थीं तब वह वहीं खड़ा रहता था। तांगा जानेके बाद ही वह धर्मशाला छोड़ देता था और जब बाईजी आ जाती थीं तब पुनः आ जाता था। अन्तमें जब वह बीमार हुआ तब दो दिन तक उसने कुछ भी नहीं लिया और बाईजी के द्वारा नमस्कारमन्त्रका श्रवण करते हुए उसने प्राणविसर्जन किया। कहनेका तात्पर्य यह है कि पशु भी शुभ निमित्त पाकर शुभ गतिके पात्र हो जाते हैं, मनुष्योंकी कथा कौन कहे ? बाईजीकी हाजिरजवाबी बाईजीकी विलक्षण प्रतिभा थी। उन्हें तत्काल उत्तर सूझता था। एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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