________________
श्रीगोम्मटेश्वर - यात्रा
Jain Education International
लौकिक व्यवहार ऐसा होता है कि कुम्भकार घटका कर्ता है। यह भी निर्मूल कथन नहीं। इसे सर्वथा न मानना भी युक्तिसंगत नहीं । यहाँ मनमें यह कल्पना आई कि साधुता तो संसार- दुःख हरनेके लिये रामबाण औषधि है, परन्तु नामसाधुतासे कुछ तत्त्व नहीं निकलता - 'आँखोंके अन्धे नाम नैनसुख' ।
यहाँसे चलकर श्रीनेमिनाथ स्वामीके निर्वाणस्थानको, जो कि पञ्चम टोंकपर है, चल दिये । आध घण्टा बाद पहुँच गये। उस स्थानपर एक छोटी-सी मढ़िया बनी हुई है। कोई तो इसे आदमबाबा मानकर पूजते हैं, कोई दत्तात्रेय मानकर उपासना करते हैं और जैनी लोग श्रीनेमिनाथजी मानकर उपासना करते हैं। अंतिम माननेवालोंमें हम लोग थे। हमने तथा कमलापति सेठ, स्वर्गीय बाईजी और स्वर्गीय मुलाबाई आदिने आनन्दसे श्रीनेमिनाथ स्वामीकी भावपूर्वक पूजा की। इसके बाद आध घण्टा वहाँ ठहरे । स्थान रम्य था । परन्तु दस बज गये थे, अतः अधिक नहीं ठहर सके । यहाँसे चलकर एक घंटा बाद शेषा वन (सहसाम्रवन) में आ गये । यहाँकी शोभा अवर्णनीय है । सघन आम्र वन है। उपयोगविशुद्धताके लिए एकान्त स्थान है, परन्तु क्षुधाबाधाके कारण एक घण्टा बाद पर्वतके नीचे जो धर्मशाला है उसमें आ गये और भोजनादिसे निश्चिन्त हो गये । तीन बजे उठे। थोड़ा काल स्वाध्याय किया । यहाँपर ब्रह्मचारी भरतपुरवालोंसे परिचय हुआ । आप बहुत विलक्षण जीव हैं । यहाँ रहकर आप धर्म साधन करते हैं । परन्तु जैसे आपने स्थान चुना वैसे परिणाम न चुना, अन्यथा फिर यहाँसे अन्यत्र जानेकी इच्छा न होती। मनुष्य चाहता तो बहुत है परन्तु कर्त्तव्य - पथमें उसका अंश भी नहीं लाता। यही कारण है कि आजन्म कोल्हू के बैलकी दशा रहती है । चक्कर तो हजारों मीलका हो जाता है, परन्तु क्षेत्रकी सीमा दस या बारह गज ही रहती होगी। इसी प्रकार इस संसारी जीवका प्रयास है। इसी चतुर्गतिके भीतर ही घूमता रहता है। जिस प्रयाससे इस चतुर्गतिमें भ्रमण न हो उस ओर लक्ष्य नहीं। जो प्रयास हम कर रहे हैं, शुभाशुभ भावसे परे नहीं। इससे परे जो वस्तु है वह हमारे ध्यानमें नहीं आती, अतः निरन्तर इसीके चक्रमें पड़े रहते हैं । उस चक्रसे निकलनेकी योग्यता भी मिल जाती है, परन्तु अनादिकालीन संस्कारोंके दृढ़ प्रभावसे उपयोगमें नहीं लाते । अन्तमें जहाँ योग्यता नहीं उसी पर्यायमें चले जाते हैं । ब्रह्मचारी छोटेलालजी योग्य व्यक्ति हैं, परन्तु इतनी कथा करते हैं कि अपनी योग्यताको अयोग्य दशामें ला देते हैं। अस्तु, उनकी कथा क्या लिखें, हम स्वयं
231
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org