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________________ २१२ २१४ ७१. १२. २१४ २१६ २१७ ७३. ७४. २१८ ७५. २२० २२२ ७६. ७७. २३२ ७८. २३६ २४५ ७६. २५५ ० २५७ २५६ २६१ २६६ ० २६८ ८६. द्रोणगिरि रुढ़िवादका एक उदाहरण द्रोणगिरि क्षेत्रपर पाठशालाकी स्थापना दया ही मानवका प्रमुख कर्तव्य वेश्याव्यसन महिलाका विवेक बालादपि सुभाषितं ग्राह्मम् श्री गोमटेश्वर यात्रा श्री गिरिनार यात्रा भिक्षा से शिक्षा प्रभावना परवारसभाके अधिवेशन निस्पृह विद्वान् और उदार गृहस्थ जबलपुरमें शिक्षा-मन्दिर परवारसभामें विधवाविवाहका प्रस्ताव पपौरा और अहारक्षेत्र रूढ़ियोंकी राजधानी बरुआसागर बाईजीका सर्वस्व समर्पण बण्डाकी दो वार्ताएँ पुण्य परीक्षा अपनी भूल बिल्लीकी समाधि बाईजीकी हाजिरजवाबी व्यवस्थाप्रिय बाईजी अबला नहीं सबला हरी भरी खेती शाहपुरमें विद्यालय खतौलीमें कुन्दकुन्दविद्यालय कुछ प्रकरण शिखरजीकी यात्रा और बाईजीका व्रतग्रहण बाईजीकी आत्मकथा बाईजीका समाधिमरण समाधिके बाद शाहपुरमें २७४ २७२ २७४ २७५ २७६ २७७ ६१ २७७ २७८ २८० २८३ २८५ २८८ २६० २६३ ६ १००. २६६ १०१. १०२. १०३. ३०२ ३०६ ३११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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