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________________ ૬૬ १०० १०१ १०४ १०८ १११ ११३ ११७ १२१ १२२ १२५ १२७ १३० १३५ १३७ बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटीमें जैनकोर्स सहस्रनामका अद्भुत प्रभाव बाईजीके शिरश्शूल बाईजीका स्वाभिमान बाईजीका महान् तत्त्वज्ञान डाक्टर या सहृदयताका अवतार बुन्देलखण्डके दो महान् विद्वान् चकौतीमें द्रौपदी नीच जाति, पर उच्च विचार नवद्वीप, कलकत्ता फिर बनारस बाबा शिवलालजी और बाबा दौलतरामजी कोई उपदेष्टा नहीं था सागरमें श्री सत्तरसुधातरगिणी जैन पाठशाला की स्थापना पाठशालाकी सहायताके लिए मड़ावरामें विमानोत्सव पतित पावन जैनधर्म दूरदर्शी मूलचन्द्रजी सर्राफ शंकित संसार निवृत्तिकी ओर पञ्चोंकी अदालत जातिका संवर श्रीमान् बाबा गोकुलचन्द्रजी पञ्चोंका दरबार धर्मका ठेकेदार कोई नहीं रसखीर असफल चोर आज यहाँ, कल वहाँ मोराजीके विशाल प्रांगणमें कलशोत्सवमें श्री पं. अम्बादासजी शास्त्रीका भाषण वैशाखिया श्री पन्नालालजी गजकोटा चन्देकी धुनमें श्री सिंघई रतनलालजी दानवीर श्रीकमरया रज्जीलालजी जैन जाति भूषण श्री सिंघई कुन्दनलालजी १४३ १४८ १५१ १६६ १७२ १७५ १७६ १८५ १६० १६१ १६२ १६४ १६६ २०४ २०५ २०६ २०८ २०६ ६७. ६८. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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