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________________ बाईजीका महान् तत्त्वज्ञान जाओ ।' यह सब तय होनेके बाद जब हमलोग चलनेको तैयार हुए तब डाक्टर साहब बोले-'हमारा भारतवर्ष बहुत चालाक हो गया है।' मैंने कहा - डाक्टर साहब इस कथाका यहाँ क्या अवसर था । यहाँ तो आँखके इलाजकी बात थी, यह कहाँकी बलाय कि भारतवर्ष बड़ा चालाक है।' डाक्टर साहब बोले- 'हम तुमको समझाते हैं, हमारा कहना अनवसर नहीं, तुम व सर्राफजी बाईजीका इलाज करानेके लिये आये, बाईजीके चिन्हसे यह प्रतीत होता है कि इनके पास अच्छी सम्पत्ति होनी चाहिये, परन्तु वे इस प्रकार वस्त्र पहिन कर आई कि जिससे दूसरेको यह निश्चय हो सके कि इनके पास कुछ नहीं, ऐसा असद्व्यवहार अच्छा नहीं।' बाईजी बोलीं- 'भैया डाक्टर ! क्या यह नियम है कि जो रूपवान् हो उसके पास धन भी हो, पर यह कोई सिद्धान्त नहीं है। धनाढ्य और रूपवत्ताकी कोई व्याप्ति भी नहीं है, अतः आपका ज्ञान दूषित है। अब हम आपसे ऑपरेशन नहीं कराना चाहते । अन्धा रहना अच्छा, परन्तु लोभी आदमीसे ऑपरेशन कराना अच्छा नहीं । 101 डाक्टर साहबने बहुत कुछ कहा, परन्तु बाईजीने ऑपरेशन कराना स्वीकार नहीं किया। श्रीमूलचन्द्रजी सर्राफने भी बहुत कुछ कहा, परन्तु एककी न चली और बाईजी वहाँसे क्षेत्रपाल ललितपुरको प्रस्थान कर गई और नियम किया कि श्री अभिनन्दन स्वामी का दर्शन-पूजन कर ही अपना जन्म बितायेंगे । यदि कोई निमित्त मिला तो ऑपरेशन करा लेवेंगे, अन्यथा एक जन्म ऐसी ही अवस्था में यापन करेंगे। Jain Education International बाईजीका महान् तत्त्वज्ञान क्षेत्रपाल पहुँचकर बाईजी आनन्दसे रहने लगीं । पासमें ननदकी लड़की थी जो उनकी वैयावृत्त्य करतीं थी । बाईजीकी दैनिक चर्या इस प्रकार थीं- 'प्रातःकाल सामायिक करना, उसके बाद शौचादिसे निवृत्त होकर श्री अभिनन्दनस्वामीके दर्शन करना और वहीं एक घण्टा पाठ करना, पश्चात् वन्दना करके १० बजे निवास स्थान पर आकर भोजनसे निवृत्त हो आराम करना, फिर सामायिकादि पाठ करके स्वाध्याय श्रवण करना, अनन्तर शान्तिरूपसे अपने समयकी उपयोगिता करनेमें तत्पर रहना, पश्चात् सायंकालकी सामायिक आदि क्रिया करना, यदि शास्त्र श्रवणका निमित्त मिल जाय तब एक घण्टा उसमें लगाना, अनन्तर निद्रा लेना ।' For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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