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प्रस्तावना
वचनिका:
योगीन्दुदेव रचित योगसार पर पं० पन्नालाल चौधरी ने ढूंढारी भाषा में वचनिका लिखी है, जो इस ग्रन्थ में प्रकाशित है। इसमें प्रत्येक दोहा का सामान्य अर्थ करते हुए दोहागत पारिभाषिक शब्दों का स्पष्टीकरण किया गया है और आवश्यकतानुसार उनके भेद-प्रभेदों पर भी प्रकाश डाला गया है। किसी-किसी दोहा का अर्थ करने के पश्चात् भावार्थ भी लिखा है, जिससे पाठकों को प्रत्येक विषय की जानकारी सरलता से मिल जाती है और वचनिकाकार द्वारा वनिका लिखने के उद्देश्य की पूर्ति होती है। वचनिकाकार:
पं० पन्नालाल चौधरी विक्रम की बीसवीं शती के विद्वान् हैं। इन्होंने तत्त्वसार की वचनिका वि० सं० १६३११ में और योगसार की वचनिका वि० सं० १६३२२ में लिखी थी। संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में रचित अनेक प्राचीन ग्रन्थों पर भी इन्होंने ढूंढारी भाषा में वचनिकाएँ लिखी हैं । इससे ज्ञात होता है कि ये राजस्थान के निवासी थे। इनका जन्म खण्डेलवाल जाति के पाण्ड्या गोत्र में हुआ था। इनके अग्रज विद्वानों में झूथाराम चौधरी, छाजूलाल पोपल्या एवं नाथूलाल दोसी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन विद्वानों ने पं० सदासुख कासलीवाल की संगति प्राप्तकर पहले अध्ययन किया था। तत्पश्चात् पं० पन्नालाल चौधरी ने भी जयपुर में विद्याभ्यास किया था। ये दुलीचन्द जी के सम्बन्धी थे और उन्हीं की प्रेरणा से पं० चौधरी ने इस ग्रन्थ की वचनिका लिखी थी। अन्तिम प्रशस्ति :
योगसार की वचनिका के अन्त में पं० पन्नालाल चौधरी ने विभिन्न बीस १. तत्त्वसार की वचनिका भई भव्य सुखकार ।
वांचे पढ़े तिनिकै सही हो है जय जयकार ॥ वैशाख कृष्णा सप्तमी गुरूवार शुभ जान । उगणीस इकतीस मित संवत्सर शुभ मान । लिखी वनिका मंदमति पन्नालाल सुजान । भविजन याकौं सोधियो क्षमा करहु बुधिवान ॥
-तत्त्वसार वचनिका, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य १-३, पृ० १३८ २. संवत्सर विक्रम तणौं उगणीस बत्तीस । सावण सुदी एकादशी ता दिन पूर्ण करीस ॥
-योगसार; वचनिका; अन्तिम प्रशस्ति, पद्य २०, पृ० ३८
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