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________________ प्रस्तावना परमात्मप्रकाश- यह ग्रन्थ आध्यात्मिक दृष्टि से लिखा गया है, अतः इसमें अध्यात्मविद्या का विशेष विवेचन है । ग्रन्थ के अन्तःसाक्ष्यों से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थ योगीन्दुदेव ने अपने शिष्य प्रभाकर भट्ट के द्वारा किये गये प्रश्नों के उत्तर में लिखा है। इसमें कुल (१२३+४ तथा २१४ + १२ = ) ३५३ पद्य हैं। यह दो अधिकारों में विभक्त है-प्रथम त्रिविधात्माधिकार और द्वितीय मोक्षाधिकार । प्रथम अधिकार में आत्मा के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा-इन तीन भेदों पर विस्तार से विचार किया है तथा द्वितीय अधिकार में मोक्ष के स्वरूप एवं उसके फलादि पर विचार करते हुए अन्त में परमसमाधि का विवेचन किया है। ___ योगसार—इसकी विषयवस्तु विस्तार से अन्यत्र दी गई है। कथन शैली: ____ अध्यात्म प्रधान इस ग्रन्थ में योगीन्दुदेव ने एक ही विषय का अनेक प्रकार से विवेचन किया है। साथ ही प्रसङ्गानुसार कई स्थानों पर निश्चय और व्यवहार शब्दों का प्रयोग करते हुये यह स्पष्ट किया है कि यह कथन निश्चय से है और यह कथन व्यवहार से । इससे पाठक दिग्भ्रमित नहीं होता है। उपमाएँ और उनका प्रयोग : विषयवस्तु रुचिकर एवं सहजगम्य हो इसके लिये योगीन्दुदेव ने जैनदर्शन सम्मत उपमाओं/दृष्टान्तों का प्रयोग किया है। पुण्य की सोने की जंजीर और पाप की लोहे की जंजीर से उपमा दी है तथा कर्मविहीन आत्मा की जल से निर्लिप्त कमलिनी-पत्र से तुलना की है । छन्द-योजना: ___ योगीन्दुदेव ने यद्यपि प्रमुख रूप से दोहा छन्द का ही प्रयोग किया है, किन्तु उनके योगसार में दोहा के अतिरिक्त सोरठा और चौपाई छन्द में रचे गये पद्य भी उपलब्ध हैं। अतः यहाँ उनके लक्षणों पर विचार करना अप्रासङ्गिक न होगा। दोहा-प्राकृतपैंगलम् में दोहा छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया है तेरह मत्ता पढम पअ, पुणु एयारह देह । पुणु तेरह एआरहइ, दोहा लक्खण एह ॥ अर्थात् जिस छन्द के प्रथम चरण में तेरह मात्राएँ, द्वितीय चरण में ग्यारह मात्राएं एवं तीसरे तथा चौथे चरण में क्रमशः तेरह और ग्यारह मात्राएँ पाई जायें, वह दोहा छन्द है । यथा१. प्राकृतपैंगलम्, भाग १, पृ० ७० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003999
Book TitleYogasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1987
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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