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________________ प्रस्तावना ३३ के पोषक हैं, अतः उन्हें तदनुरूप सम्मान देने की दृष्टि से योगीन्दुदेव नाम समीचीन प्रतीत होता है। ___ यद्यपि योगीन्दुदेव के माता-पिता अथवा गुरु के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता है तथापि परमात्मप्रकाश के पूर्वोक्त पद्य से ज्ञात होता है कि योगीन्दुदेव ने प्रभाकर भट्ट नाम के शिष्य के निवेदन पर परमात्मप्रकाश की रचना की थी। ये प्रभाकर भट्ट प्रसिद्ध पूर्वमीमांसक प्रभाकर भट्ट ( लगभग ६०० ई० ) से भिन्न हैं। योगीन्दुदेव एक आध्यात्मिक सन्त पुरुष थे। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों से इनकी आध्यात्मिक प्रकृति/प्रवृत्ति का सहज ज्ञान होता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में शिव, शंकर, विष्णु, रुद्र, ब्रह्म आदि वैदिक शब्दों का प्रयोग किया है। अतः क्षु० जिनेन्द्र वर्णी का यह कथन ध्यातव्य है कि-"पहले ये वैदिक मतानुसारी रहे होंगे, क्योंकि आपकी कथन शैली में वैदिक मान्यता के शब्द बहुलता से पाये जाते हैं ।"३ योगीन्दुदेव की प्रारम्भिक स्थिति चाहे जो भी रही हो, किन्तु उन्होंने जीव के सिद्ध हो जाने पर उसके भिक्षार्थ पर्यटन की समीक्षा की है । अतः ये दिगम्बराचार्य थे, इसमें कोई सन्देह नहीं है । काल निर्धारण : योगीन्दुदेव के द्वारा रचित परमात्मप्रकाश और योगसार में हमें ऐसे कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे योगीन्दुदेव के समय पर प्रकाश पड़ सके । अतः उनके समय निर्धारण हेतु हमारे सामने प्रमुख रूप से निम्न दो बिन्दु ही शेष रहते हैं १. योगीन्दुदेव की रचनाओं पर किन-किन आचार्यों के ग्रन्थों का प्रभाव है ? २. योगीन्दुदेव का किन-किन परवर्ती आचार्यों ने उल्लेख किया है अथवा उनके ग्रन्थों से सामग्री ग्रहण की है ? डॉ० ए० एन० उपाध्ये ने प्रथम बिन्दु पर विचार करते हुये निष्कर्ष निकाला है कि योगीन्दुदेव के ग्रन्थों पर आचार्य कुन्दकुन्द एवं पूज्यपाद के ग्रन्थों का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है ।" उपर्युक्त आचार्यद्वय के ग्रन्थों १. परमात्मप्रकाश, प्रस्तावना ( हिन्दी अनुवाद : पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री), पृष्ठ २१०। २. योगसार, दोहा १०५ । ३. जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश; भाग ३, पृ० ४०१, देखिये-योगेंदुदेव । ४. योगसार, दोहा ४३ ।। ५. परमात्मप्रकाश, प्रस्तावना ( हिन्दी अनुवाद : पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री), पृ० ११३। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003999
Book TitleYogasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1987
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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