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________________ योगसार ग्रन्थकार : योगीन्दुदेव योगीन्दु नाम के सन्दर्भ में परमात्मप्रकाश और योगसार में निम्नलिखित पद्य उपलब्ध हैं भावि पणविवि पंच-गुरु सिरि-जोइंदु जिणाउ । भट्टपहायरि विण्णविउ विमलु करेविणु भाउ ॥ -परमात्मप्रकाश, १/८ संसारह भयभीयएण जोगिचंद मुणिएण। अप्पा संबोहण कया दोहा एक्कमणेण ॥ -योगसार, १०८ परमात्मप्रकाश के उपर्युक्त पद्य में स्पष्ट रूप से जोइंदु ( योगीन्दु ) शब्द का उल्लेख है, अतः इसमें कुछ विशेष कहने का अवसर नहीं है। किन्तु योगसार के पद्य में जोगिचंद ( योगिचन्द्र ) शब्द का उल्लेख है, एतदर्थ जोगिचंद से जोइन्दु की कल्पना करने के लिये कुछ आधार/औचित्य अपेक्षित हैं । जोइंदु और जोगिचंद-ये दोनों शब्द समानार्थक हैं। संस्कृत साहित्य में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध होते हैं, जहाँ पर्यायवाची शब्द के माध्यम से कवि आदि के नाम का उल्लेख किया गया है। अतः जोइंदु को जोगिचंद अथवा जोगिचंद को जोइंदु के रूप में प्रयोग करना कवि परम्परा के विरुद्ध नहीं हैं। इस प्रसंग में डॉ० ए० एन० उपाध्ये का यह कथन मननीय है कि ऐसे अनेक दृष्टान्त हैं जहाँ व्यक्तिगत नामों में इंदु और चंद्र आपस में बदल दिये गये हैं, जैसे-भागेंदु और भागचंद्र तथा शुभेदु और शुभचंद्र ।। परमात्मप्रकाश और योगसार के कर्ता के रूप में विद्वानों के द्वारा बहुमान्य जोइंदु का संस्कृत रूप योगीन्दु ही प्रचलित है । यतः कवि अध्यात्म परम्परा १. विनयेन्दुमुनेर्वाक्याद् भव्यानुग्रहहेतुना। इष्टोपदेशटीकेयं कृताशाधरधीमता ।। उपशम इव मूर्तः सागरेन्दोमुनीद्रादजनि विनयचन्द्रः सच्चकोरेकचन्द्रः । जगदमृतसगर्भा शास्त्रसंदर्भगर्भाः शुचिचरितवरिष्णोर्यस्य धिन्वन्ति वाचः ॥ -इष्टोपदेश, पण्डितप्रवर आशाधरकृत संस्कृत टीका, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य १-२ इन पद्यों में विनयचन्द्र को विनयेन्दु और सागरचन्द्र को सागरेन्दु के नाम से उल्लिखित किया गया है। २. परमात्मप्रकाश, प्रस्तावना ( हिन्दी अनुवाद : पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री) पृष्ठ १२२ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003999
Book TitleYogasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1987
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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