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प्रस्तावना
तत्त्वों में एकमात्र आत्म- ( जीव- ) तत्त्व ही ऐसा है जो चेतन है, शेष तत्त्व जड़ हैं। अत: यह सर्वोपरि है। इसी निर्मल आत्मतत्त्व के ध्यान से मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है। आत्मा तीन प्रकार का है-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। इनमें बहिरात्मा का त्यागकर अन्तरात्मारूप होकर परमात्मा का ध्यान करना चाहिये । जो मिथ्यात्व एवं मोह के वशीभूत होकर पर-पदार्थों को आत्मा से भिन्न नहीं मानता है वह बहिरात्मा है, यह चतुर्गतिरूप संसार में भ्रमण कराता है और जो आत्मा पर-पदार्थों को आत्मा से भिन्न जानता हआ उनका त्याग करता है वह पण्डित-आत्मा अर्थात् अन्तरात्मा है। जो निर्मल, निष्कलुष, जिन ( कर्मरूपी शत्रुओंको जीतने वाला ); विष्णु (ज्ञानमय होने के कारण जगत् में व्याप्त), बुद्ध (केवलज्ञान का धारक), शिव ( कल्याणकारी ) और शान्त ( अथवा संत अर्थात् सदाकाल विद्यमान रहने वाला ) है, वह परमात्मा है ।
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि देहादिक पर-पदार्थों को आत्मा जानने वाला बहिरात्मा है, वह संसार-सागरमें भ्रमण कराने वाला है। क्योंकि जो देहादिक पर-पदार्थ कहे गये हैं वे आत्म-स्वरूप नहीं हैं। जो आत्माको नहीं जानता है, वह शास्त्र पढ़ते हुये भी जड़ ( मूर्ख ) है और जो आत्माको आत्मा जानता है, वह निर्वाणको प्राप्त होता है, अत: आत्मदर्शन सर्वश्रेष्ठ है, इसके बिना अन्य कुछ भी नहीं है।
जो तीनों लोकों में ध्यान करने योग्य हैं, ऐसे जिनेन्द्र भगवान् निश्चय से आत्मा हैं। इसी को हम और उदार दृष्टि से देखें तो निश्चयनय से आत्मा ही अरिहन्त है, उसी का प्रकट होना सिद्ध है; उसीको आचार्य जानो, वही उपाध्याय है और उसी को मुनि समझो । वही आत्मा शिव है, शङ्कर है, विष्णु है, वही रुद्र है, वही बुद्ध है, वही जिनेन्द्र भगवान् है, वही ईश्वर है, वही ब्रह्म है और वही आत्मा सिद्ध भी है। अतः एकमात्र यही आत्मा सारभूत है । इस आत्मदेव के जाने बिना जीव कुतीर्थों में भ्रमण करता है। वस्तुतः तीर्थों और देवालयों ( मंदिरों ) में देव ( परमात्मा ) नहीं है । जिनदेव ( आत्मदेव ) तो देह रूप देवालयमें विद्यमान है। इस बात को कोई समचित्त ज्ञानी आत्मा ही जानता है।
यह आत्मा निश्चय से शुद्ध प्रदेशों से पूरित लोकाकाश प्रमाण है और व्यवहार से तत्-तत् शरीर प्रमाण है। पुरुषाकार ( शरीराकार ) प्रमाण यह आत्मा पवित्र है, निर्मल गुणों से युक्त है। जो अपवित्र शरीर से भिन्न शुद्ध आत्मा को जानता है वह अविनाशी सुख में लीन होता है ।
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