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________________ प्रस्तावना वचनिका-१. वनिका में कुछ स्थलों पर जो पाठ छूट प्रतीत हुए हैं, उनकी प्रसङ्गानुसार पूर्ति करने का यथामति प्रयास किया है। पूर्ति पाठ इस प्रकार हैंदोहा क्रमांक पाठ पूर्ति च्यारि ध्यान 9 m अकेला ही ० - सो ही शीघ्र केवलज्ञानकू प्राप्त करै है पर ur नय १०५ अर सो ही आत्मा रुद्र है २. वचनिका में पाठों का संशोधन इस प्रकार किया गया हैदोहा संशोधित मि० प्रति का | दोहा संशोधित मि० प्रति का क्रमाङ्क पाठ पाठ | क्रमाङ्क पाठ पाठ - | १० ज्ञाना- ज्ञानावरणादिक वर्णादिक उत्थानिका सिद्धेभ्यः सिद्धेभ्याः । लिखिए लिखिए मंगलकै मंगलके ज्ञानावरण ज्ञानावर्ण ऐ जाणि इछा १३ जांणि इच्छा गतिकू उत्कृष्ट भए भऐ गतिकू - उतुकृष्ट एकाग्रचित्त ऐकाग्रचित्त एक ऐक १७ पुरुषवेद सूक्ष्मसांपराय show एक दूजा स्वरूप कहिए पूज्य संत ऐक | दुजा स्वरूप कहिऐ दर्शन कापोत सम्यक्त्व औपशमिक पुरषवेद सुक्ष्मसांपराय दरशन कपोत सम्यत्क उपशमिक पुज्य असंत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003999
Book TitleYogasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1987
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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