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देवीदास-विलास हैं एवं कैंसर जैसी भयानक बीमारियाँ भी फैल रही है। इससे बचने के लिए सारे संसार में तरह-तरह की योजनाएँ बनाई जा रही हैं लेकिन सफलता कहीं भी दिखलाई नहीं पड़ रही है। वस्तुतः प्रदूषण मनुष्यकृत ही है और उसके लिए हमारे प्राचीन आचार्यों ने यही उपाय निर्देशित किया है कि भावनाएँ सात्त्विक रखो तथा आराध्य के सम्मुख एवं अन्य उत्सव के समय शुद्ध धूप को निधूम अग्नि में क्षेपण करके वायुमण्डल को शुद्ध करो।
प्रदूषण से बचने के लिए उक्त उपायों से बढ़कर अन्य कोई उपाय कारगर नहीं है, यह सुनिश्चित है। अतः हमारे आचार्यों ने निम्न मन्त्र द्वारा उसका संकेत किया है— “अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।"
(८) फल- प्रत्येक व्यक्ति सुख चाहता है, कोई भी दुख नहीं चाहता। सच्चा सुख आत्मा के कल्याण में ही निहित है। इसलिए सभी आचार्यों ने मोक्ष-प्राप्ति को ही अनन्त सुख अथवा शाश्वत सुख कहा है। जप, तप आदि जितने भी साधन, हैं वे सभी उसी सुख प्राप्ति के लिए ही हैं। एक प्रकार से सम्यक् जप एवं तप का फल ही मोक्ष है, इसलिए मन्त्र-जाप में' मोक्षफलप्राप्तये फलम निर्वपामीति स्वाहा” कहा गया है।
(८/२६) अंगपूजा
कवि देवीदास द्वादशांगवाणी के भी परमभक्त थे। उन्होंने यद्यपि उसके अन्तर्गत आने वाले ग्रन्थों का उल्लेख नहीं किया, फिर भी, उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति करने के लिए अष्टांग-पूजा का प्रणयन किया है। इसमें कुल ११ पद्य हैं। इसकी जयमाल अनुपलब्ध है। (८/२७) अष्टप्रातिहार्य-पूजा
___ “प्रातिहार्य' शब्द जैन-धर्म एवं साहित्य का पारिभाषिक शब्द है। तीर्थंकर को केवलज्ञान होने के पश्चात् इन्द्र एक समवशरण की रचना करता है और वे गन्धकुटी के मध्य में श्रेष्ठ सिंहासन पर विराजमान रहते हैं। उस समय वे देवरचित जिनअष्टप्रातिहार्यों से सुशोभित होते हैं, वे निम्न प्रकार हैं- (१) अशोक वृक्ष- तीर्थंकर को जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त होता है, उसे अशोक बृक्ष कहा गया है क्योंकि वह शोक-निवारण के सुखद अतिशय से युक्त होता है। अशोक वृक्ष के सम्बन्ध में महापुराण में कहा गया है? - "अशोक १. दे. जिनसेन कृत महापुराण- २३/३६
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