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देवीदास-विलास
सोरठा पढ़े सुने नर कोय, श्री जिन गुण जयमाल को।
उति उत्तम फल होय, सुर नर गति पावै सुखी।।२५।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे जयमालाय॑म् निर्वपामीति स्वाहा।
गीतिका विधि पूर्व जो जिनबिम्ब पूजत द्रव्य अरु पुन भावसों। अतिपुण्यकी तिनको सु प्रापत होहि दीरध आयुसों।। जाके सुफल कर पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता। चक्रेश-खग-धरणेन्द्र-इन्द्र सु होहिं निज सुख भोगता।।२६।।
पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि। (११) श्री शीतलनाथ-जिनपूजा (१०)
- दोहा हाटक वरन सो तन नबै, धनुष महा छवि देत।
शीतलनाथ सुप्रति लखत, श्री दर्शत सम्मेद।।१।। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनचरणाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपामि।
अष्टक-नारदीचाल उष्णोदक उज्ज्वलअति धर कर नित उठ प्रात अनाहों। कंचन की झारी भरले पद पंकज अग्र बहाहों।। लीजे भव प्राणी जग में जो लाहो, शीतलनाथ जिनेश्वर पूजौं जो निजके सुखचाहो।
लीजे भव प्राणी जग में जे लाहो।।२।। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनचरणाग्रे जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन गार मिला कर केशर, ले जिन आलय आहौं। आनंद सहित धरों प्रभु आगे भव दुख तपन बुझाहौं।।
लीजे भव प्राणी जग में जो लाहो। शीतलनाथ. ।।३।। ॐ ह्रीं श्रीशीतलथजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय सुगन्धम् निर्वपामीति स्वाहा।
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