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________________ चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा - साहित्य - खण्ड सहस अठारह केवल ज्ञानी, बादी सात हजार गुमानी । अजित यक्ष मनोवेगा जच्छानी, सेवक जन पुजवै सुकामी ।। २१ । । महिमा समवशरण जिनकेरी, कहिवे शक्ति होत मति मेरी | भादों सुदि सातें सुखदाई, शिव सम्मेदशिखर चढ़ पाई ।। २२ ।। सोरठा तारन भवदधि पार, भये वंश इक्ष्वाकु में । निर्मल गुण सुखकार, वार - वार सु ध्याइये ।। २३ ।। ॐ ह्रीं श्रीचंद्रप्रभुजिनचरणाग्रे जयमालार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । गीतिका विधि पूर्व जो जिनविम्ब पूजत द्रव्य अरु पुन भावसों । अतिपुण्यकी तिनको सु प्रापत होहि दीरघ आयुसों । । जाके सुफल कर पुत्र धन-धान्यादि देह - निरोगता । चक्रेश खग-धरणेन्द्र-इन्द्र सु होहिं निज सुख भोगता । । २४ । । पुष्पाञ्जलि क्षिपामि (१०) श्रीपुष्पदन्त - जिनपूजा (९) दोहा धनुष उच्चि तन एक सै, लक्षण मगर सुपास। पहुपदन्त जिन पूजिये, धर निज हिये हुलास । । १ । । ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनचरणाग्रे पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि । अष्टक ढाल कातिक की प्राणी गंगाजल अतिसीयरौ निर्मलमणि फटिक समान हो । प्राणी ले निजमन्दिर आइये होई अशुभ करम की हानि हो । प्राणी पहुपदन्त जिन पूजिये जाके पूजत पुण्य अपार हो । प्राणी नर सुरपति सुख भोग कैं धरिये न बहुर अवतार हो । । २ । । प्राणी पहुपदन्त जिन पूजिये । ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी बाबन चन्दन आदि दे मलियागिर सार सुगन्ध हो । प्राणी ले जिन मन्दिर आइये जहॉ होय सुगति कौ बन्ध हो । प्राणी० । । ३ । । ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय सुगन्धम् निर्वपामीति स्वाहा। Jain Education International २७३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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