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विशिष्ट चित्रबन्ध-काव्यखण्ड
२३१.
(१०)दोहरा-कमलबन्ध
४
१३ । सुज
१२ | पोर
विला
सार
निवा
मर
दोहरा सुरस दुरस सारस पुरस धीरस मरस निवास। परस दरस पारस सरस पोरस सुजस विलास।।
(विवेकबत्तीसी, २)
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