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विशिष्ट चित्रबन्ध-काव्यखण्ड
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(६) दोहरा-चन्द्रमाबन्ध
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दोहरा-चन्द्रमाबन्ध वर्द्धमान सिवपद लह्यौ वध करि भव गति भर्म। पापै कसि आपै गह्यौ दह्यौ छोभ वसुकर्म।।
(जोग पच्चीसी,३)
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