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तीन बल
१. सांसारिक आत्मा में तीन बल होते हैं-१ कायिक २ वाचनिक और ३ मानसिक । जिनके वे वलिष्ठ होते हैं वे ही जीवन का वास्तविक लाभ ले सकते हैं।
कायबल२. जिनका कायवल श्रेष्ठ है वे ही मोक्ष पथ के पथिक बन सकते हैं । इस प्रकार जब मोक्षमार्ग में भी कायबल की श्रेष्ठता आवश्यक है तब सांसारिक कार्य इसके बिना कैसे हो सकते हैं।
३. प्राचीन महापुरुषों ने जो कठिन से कठिन आपत्तियां और उपसर्ग सहन किये वे कायबल की श्रेष्ठता पर ही किये, अतः शरीर को पुष्ट रखना आवश्यक है, किन्तु इसी के पोषण में सब समय न लगाया जावे। दूसरे की रक्षा स्वात्मरक्षा की ओर दृष्टि रखकर ही की जाती है, अपने आपको भूलकर नहीं।
वचनबल४. जिनमें वचन बल था उन्हीं के द्वारा आज तक मोक्ष मार्ग की पद्धति का प्रकाश हो रहा है, और उन्हीं की अकाट्य
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