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सदाचार १. अनुभवी वक्ताओं के भाषण, तथा सम्पूर्ण शास्त्रों का मूल सिद्धान्त एकमात्र सदाचारपूर्वक रहना सिखाता है।
२. सदाचार के बिना सुख पानेका यत्न करना आकाश के पुष्पावचयन के सदृश है।
३. जिस तरह मकान पक्का बनाने के लिये नींव का पक्का होना आवश्यक है, उसी तरह उज्वल भविष्य निर्माण के लिये (आदर्श जीवन के लिये) बालजीवन के सुसंस्कार सदाचारादि का सुदृढ़ होना आवश्यक है।
४. सभ्यता और असभ्यता विद्या से नहीं जानी जाती। चाहे संस्कृत भाषा का विद्वान् हो, चाहे हिन्दी, अंग्रेजी या और किसी भाषा का विद्वान् हो, जो सदाचारी है वह सभ्य है, जो असदाचारी है वह असभ्य है । प्रत्युत बिना पढ़े लिखे भी जो सदाचारी हैं वे सभ्य हैं और बुद्धिमान भी यदि सदाचारी नहीं तो असभ्य हैं।
५. सदाचार ही जीवन है। इसको निरन्तर रक्षा करने का प्रयत्न करो।
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