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स्वाध्याय
१५. मनुष्य को हितकारिणी शिक्षा आगम से मिल सकती है या उसके ज्ञाता किसी स्वाध्यायप्रेमी के सम्पर्क से मिल सकती है।
१६. तात्त्विक विचार की यही महिमा है कि यथार्थ मार्ग पर चले।
१७. एक वस्तु का दूसरी वस्तु से तादात्म्य नहीं । पदार्थ की कथा छोड़ो, एक गुण का अन्य गुण से और एक पर्याय का अन्य पर्याय से कोई सम्बन्ध नहीं । इतना जानते हुए भी पर के विभावों द्वारा की गई स्तुति निन्दा पर हर्ष बिषाद करना सिद्धान्त पर अविश्वास करने के तुल्य है।
१८. जो सिद्धान्तवेता हैं वे अपथ पर नहीं जाते । सिद्धान्तवेत्ता वही कहलाते हैं जिन्हें स्वपर ज्ञान है। तथा वे ही सच्चे वीर और आत्मसेवी हैं।
१६. शास्त्रज्ञान और बात है और भेदज्ञान और बात है। त्याग भेदज्ञान से भी भिन्न वस्तु है। उसके बिना पारमार्थिक लाभ होना कठिन है।
२०. कल्याण के इच्छुक हो तो एक घंटा नियम से स्वाध्याय में लगाओ।
२१. काल के अनुसार भले ही सब कारण विरुद्ध मिलें फिर भी स्वाध्यायप्रेमी तत्त्वज्ञानी के परिणामों में सदा शान्ति रहती है । क्योंकि आत्मा स्वभाव से शान्त है, वह केवल कर्म कलङ्क द्वारा अशान्त हो जाता है । जिस तत्त्वज्ञानी जीव के अनन्त संसार का कारण कर्म शान्त हो गया है वह संसार के वास्तविक स्वरूप को जानकर न तो किसी का कर्ता बनता है और न भोक्ता ही होता है, निरन्तर ज्ञानचेतना का जो फल है उसका
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