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वर्णी-वाणी
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६. स्वाध्याय से उत्कृष्ट और कोई तप नहीं।
७. स्वाध्याय आत्म शान्ति के लिये है, केवल ज्ञानार्जन के लिये नहीं । ज्ञानार्जन के लिये तो विद्याध्ययन है । स्वाध्याय तप है । इससे संवर और निर्जरा होती है।
८. स्वाध्याय का फल निर्जरा है, क्योंकि यह अन्तरङ्ग तप है। जिनका उपयोग स्वाध्याय में लगता है वे नियम से सम्यग्दृष्टि हैं। ___६. आगमाभ्यास ही मोक्षमार्ग में प्रधान कारण है। वह होकर भी यदि अन्तरात्मा से विपरीताभिप्राय न गया तब वह आगमाभ्यास अन्धे के लिये दीपक की तरह व्यर्थ है।
१०. शास्त्राध्ययन में उपयुक्त आत्मा कर्म बन्धन से शीघ्र मुक्त होता है।
११. सम्यग्ज्ञान का उदय उसी आत्मा के होता है जिसका आत्मा मिथ्यात्व कलङ्क कालिमा से निमुक्त हो जाता है। वह कालिमा उसी की दूर होती है जो अपने को तत्त्व भावनामय बनाने के लिये सदा स्वाध्याय करता है।
१२. शारीरिक व्याधियों की चिकित्सा डाक्टर और वैद्य कर सकते हैं लेकिन सांसारिक व्याधियों की रामबाण चिकित्सा केवल श्री वीतराग भगवान की विशुद्ध वाणी ही कर सकती है।
१३. स्वाध्याय का मर्म जानकर आकुलता नहीं होनी चाहिए । आकुलता मोक्षमार्ग में साधक नहीं, साधक तो निराकुलता है।
१४. स्वाध्याय परम तप है।
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