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स्वाध्याय
१. स्वाध्याय संसार सागर से पार करने को नौका के समान है, कषाय अटवी को दग्ध करने के लिये दावानल है, स्वानुभव समुद्र की वृद्धि के लिये पूर्णिमा का चन्द्र है, भव्य कमल विकशित करने के लिये भानु है, और पाप उलूक को छिपाने के लिये प्रचण्ड मार्तण्ड है।
२. स्वाध्याय ही परम तप है, कषाय निग्रह का मूल कारण है, ध्यान का मुख्य अङ्ग है, शुक्ल ध्यान का हेतु है, भेदज्ञान के लिये रामवाण है, विषयों में अरुचि कराने के लिये मलेरिया सहश है, आत्मगुणोंका संग्रह करने के लिये राजा तुल्य है।
३. सत्समागम से भी स्वाध्याय विशेष हितकर है । सत्समागम आश्रव का कारण है जब कि स्वाध्याय स्वात्माभिमुख होने का प्रथम उपाय है। सत्समागम में प्रकृति विरुद्ध भी मनुध्य मिल जाते हैं परन्तु स्वाध्याय में इसकी भी सम्भावना नहीं, अतः स्वाध्याय की समानता रखनेवाला अन्य कोई नहीं ।
४. स्वाध्याय को अवहेलना करने से ही हम दैन्यवृत्ति के पात्र और तिरस्कार के भाजन हुए हैं।
५. कल्याण के मार्ग में स्वाध्याय प्रधान सहकारी कारण है।
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