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वर्णी-वाणी
२४. चारित्र शून्य ज्ञान नपुंसक के लिये नवोढा स्त्री और कंजूस के लिये वृहद् धन राशि के समान निरर्थक है ।
२५. अज्ञान निवृत्तिमात्र से आत्मा शान्ति का पात्र नहीं होता । इसका अर्थ यह नहीं कि ज्ञान कोई लाभ दायक वस्तु नही किन्तु उसका कार्य अज्ञान निवृत्ति तो उसके होते ही हो जाता है । परन्तु जिस तरह सूर्य के उदय से मार्ग दर्शन हो जाने पर भी अभिलषित स्थान की प्राप्ति गमन से ही होती है उसी तरह ज्ञान से मोक्ष पथ का ज्ञान हो जाने पर भी उसकी प्राप्ति चारित्र से हो होती है ।
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२६. जबतक चारित्र गुण का निर्मल परिणमन न होगा तब तक रागद्वेष की कलुषता नहीं छूट सकती ।
२७. वही ज्ञान प्रशंसनीय है जो चारित्र से युक्त है । चारित्र ही साक्षान्मोक्षमार्ग है ।
२८. उपयोग की निर्मलता ही चारित्र है ।
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