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वर्णा-वाणी
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१२. ज्ञान का वही विकाश उतम है जो सम्यक् भाव से अलंकृत हो।
१३. जब सम्यग्ज्ञान आत्मा में हो जाता है तब पर पदार्थ का सम्बन्ध न छूटने पर भी वह छूटा सा हो जाता है।
१४. सम्यग्ज्ञानी जीव मिथ्यादृष्टि की तरह अनन्त संसार के कारणों से कभी भी आकुलित नहीं होता।
१५. इस काल में ज्ञानार्जन ही आत्मगुण का वास्तविक पोषक है।
१६. जिनको सम्यग्ज्ञान हो गया वही ज्ञानचेतना के स्वामी हैं, और वही निराकुल सुख के भोक्ता हैं।
१७. स्वप्नावस्था में जो भ्रमजन्य वेदना होती है उसका निवारण जाग्रत् अवस्था में स्वयमेव हो जाता है, उसी तरह अज्ञानावस्था में जो दुःख होता है उसका निवारण ज्ञानावस्था में स्वयमेव हो जाता है।
१८. जिसे अंशमात्र भी निर्मल ज्ञान हो गया वह कभी संसार यातना का पात्र नहीं हो सकता।
१६. ज्ञान वह है जिससे अज्ञान भाव की निवृत्ति हो ।
२०. संसार में जो बड़े बड़े ज्ञानी जन हैं वे ज्ञानार्जन इसीलिये करते हैं कि उनके अज्ञान जन्य आकुलता का आविर्भाव न हो।
२१. ज्ञान हो सभी गुणों का प्रकाशक है। इसके बिना मनुष्य की गणना बिना सींग के बैल या गर्दभों में की जाती है। ज्ञान का विकाश होते ही मनुष्य की गणना ज्ञानियों में होने लगती है, जिसके द्वारा संसार का महोपकार होता है ।
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