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________________ ज्ञान १. ज्ञान शून्य जीवन सार शून्य तरुवत् निरर्थक है । २. ज्ञान मोक्ष का हेतु है । यदि वह नहीं है तब व्रत, नियम, शील और जप तप के होने पर भी अज्ञानी जीवों को मोक्ष लाभ नहीं हो सकता । ३. भोजन का उपयोग क्षुधानिवृत्ति के अर्थ है एवं ज्ञान का उपयोग रागादिनिवृत्ति के अर्थ है केवल अज्ञाननिवृत्ति ही नहीं, अज्ञान निवृत्ति रूप तो वह स्वयं है । ४. ख वही है जिसमें देखने की शक्ति हो अन्यथा उसका होना न होने के तुल्य है । इसी तरह ज्ञान वही है जो स्वपर विवेक करा देवे, अन्यथा उस ज्ञान का कोई मूल्य नहीं । ५. जो भोजन एक दिन अमृत माना जाता था आज वह विषरूप हो गया । जो वैय्यावृत्त एक दिन आभ्यन्तर तप की गणना में था तथा निर्जरा का साधक था आज वही तप ग्लानि में गणनीय हो गया ! यह सब हमारी अज्ञानता का विलास है । ६. संसार में प्राणियों को नाना प्रकार के अनिष्ट सम्बन्ध होते हैं और मोहोदय) की बलवत्ता से वे भोगने पड़ते हैं । किन्तु जो ज्ञानी जीव हैं वे मोह के क्षयोपशम से उन्हें जानते हैं; भोगते नहीं । अतएव वहीं बाह्य सामग्री उन्हें कर्मबन्ध में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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