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रत्नत्रय
६. धर्म की रक्षा करनेवाले रत्नत्रयधारी पवित्र आत्मा होते हैं | उन्हीं के वाक्य आगम रूप होकर इतर पुरुषों को धर्मलाभ कराने में निमित्त होते हैं ।
७. सम्यग्दृष्टि जीव का अभिप्राय इतना निर्मल है कि वह अपराधी जीव का अभिप्राय से बुरा नहीं चाहता। उसके उपभोग क्रिया होती है इसका कारण यह है कि दर्शन मोह के उदय से बलात् उसे उपभोग क्रिया करनी पड़ती है । एतावता उसके विरागता नहीं है, ऐसा नहीं कह सकते ।
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1996 95
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