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वर्णी-वाणी
___५. पर के उत्कर्ष कथा के पुराणों को मनन करने से हम उत्कर्ष के पात्र नहीं हो सकते, अपि तु उस मार्ग पर आरूढ़ होकर मन्दगति से प्रति समय गमन करने पर एक दिन वह आ सकता है जब कि हमारो उत्कर्षता के हम ही दृष्टान्त होकर अनादि मन्त्र द्वारा मोक्षाभिलाषियों के स्मरण विषय बन सकते हैं।
८. आत्मोत्कर्ष के मार्ग में कर्मनिमित्तक इटानिष्ट कल्पना ने जो अपना प्रभुत्व जमा रखा है उसे ध्वंस करो, यही मोक्षमार्ग है।
६. श्रद्धा के साथ ही सम्यग्ज्ञान का उदय होता है । सम्यग्ज्ञान पूर्वक जो त्याग है वहीं चारित्र व्यपदेश को पाता है, वही मोक्षमार्ग है । हम अनादिकाल से इस मार्ग के अभाव में संसार के पात्र बन रहे हैं।
१०. जिन महानुभावों ने रागद्वेष की शृङ्खला तोड़ने का अधिकार प्राप्त कर लिया वही मोक्ष के पात्र हैं।
११. जीव अपने ही परिणामों की कलुपता से संसारी है, कलुषता गई कि संसार चला गया।
१२. इस काल में जो मनुष्य यथाशक्ति कार्य करेगा, आडम्बर जाल से मुक्त रहेगा तथा निराकुल रहने की चेष्टा करेगा वही मोक्ष का पात्र होगा। .. १३. संसार में वही मनुष्य परमात्मपद का अधिकारी हो सकता है जो संसार से उदासीन है। . १४. मोक्षमार्ग दर्शन-ज्ञान-चारित्रात्मक है, अतः निरन्तर उसी में स्थित रहो, उसी का ध्यान करो, उसी का चिन्तवन
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