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मोक्षमार्ग
करो, और उसी में निरन्तर विहार करो, यही मोक्ष प्राप्ति का सरल उपाय है।
१५. शरीर में ५ करोड़, ६८ लाख, ६६ हजार ५ सौ ८४ रोग रहते हैं । अतः जितनी चिन्ता इन रोगों के घर शरीर को स्वच्छ और सुरक्षित करने की लोग करते हैं, यदि उतनी चिन्ता शुद्ध चैतन्य स्वरूप आत्मा को स्वच्छ और सुरक्षित रखने की ( रागद्वेष से बचाने की) करें तो एक दिन वे अवश्य ही नर से नारायण हो जायँगे इसमें कोई आश्चर्य नहीं ।
१६. विषय से निवृत्त होने पर तत्त्वज्ञान की निरन्तर भावना ही कुछ काल में संसार लतिका का मूलोच्छेद कर देती है। केवल देहशोषण मोक्षमार्ग नहीं है।
१७. शान्ति ही मोक्ष का साम्राज्य है। बिना शान्ति के मोक्षमार्ग होना असम्भव है।
१८. जहाँ तक बने ससार और मोक्ष अपने ही में देखो, . यही तत्त्वज्ञान तुम्हें सिद्धपद तक पहुँचा देगा।
१६. संसारी और मुक्त ये दोनों ही आत्मा की विशेष अवस्थाएँ हैं । इनमें से वह अवस्था, जो आत्मा को आकुलता उत्पन्न करती है संसार है और दूसरी अवस्था जो निराकुलता की जननी है मोक्ष है । यदि इस भयङ्कर दुःखमय संसार से छूटना चाहते हो तो उसमें परिभ्रमण करानेवाले भाव को छोड़ो, उसके छोड़ने से ही सुखदा अवस्था (मुक्तावस्था) प्राप्त हो जायगी। . . .
२०. निष्कपट होकर जो काम करता है. वही मोक्षमार्ग का पात्र होता है।
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