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मोक्षमार्ग १. आत्मा अनादिकालीन अपनी भूल से ही संसारी बन रहा है । भूल मिटी की मोक्ष का पात्र होने में बिलम्ब नहीं ।
२. जो परोषह विजयी होते हैं वही मोक्ष के पात्र होते हैं।
३. जिन जीवों के अभिप्राय शुद्ध हैं चाहे वे कोई भी हों, मोक्षमार्ग के पथिक हैं।
४. जिन जीवों ने अपनी लालसा का अन्त कर दिया वे ही मोक्षमार्ग के पात्र हैं।
५. रागादिक न हों, इसको चिन्ता न करे । चिन्ता इस बात की करे कि इस प्रकार के जितने भी भाव हैं वे सब विभाव हैं, क्षणिक हैं, व्यभिचारी हैं, अतः इनको परकृत जान इनमें हर्ष विषाद करना उचित नहीं। यही चिन्ता मोक्षमार्ग की प्रथम सोपान है।
६. हम लोग सदा पर पदार्थ में उत्कर्ष और अपकर्ष की समालोचना करते रहते हैं परन्तु “हम कौन हैं ?” इसकी ओर कभी भी दृष्टिपात नहीं करते । फल यह होता है कि आजन्म ज्यों के त्यों भी नहीं ; किन्तु छब्बे के स्थान में दुवे रह जाते हैं ! अतः निरन्तर स्वकीय भावों को उज्वल रखने में प्रयत्नशील रहना ही मोक्षाभिलाषियों का मुख्य कर्तव्य है।
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