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________________ २५ आत्मविश्वास ११. अस्सी वर्ष की बुढ़िया आत्मबल से धीरे धीरे पैदल चलकर दुर्गम तीर्थराज के दर्शन कर जो पुण्य सञ्चित करती है वह आत्मविश्वास में अश्रद्धालु डोली पर चढ़कर यात्रा करनेवालों को कदापि सम्भव नहीं। ... . १२. जो आत्मविश्वास पर अटल श्रद्धा रखकर क्रम से सोपान चढ़ते हुए मोक्षमन्दिर में पहुंचकर मुक्तिरमणी पति हुए वे भी तो पूर्व में हम ही जैसे मनुष्य थे । अतः सिद्ध है कि आत्मविश्वास एक ऐसा प्रयत्नशाली पवित्र गुण है जिससे नर को नारायण होने में कोई विलम्ब नहीं लगता। १३. आत्मा के लिये कोई भी कार्य असाध्य नहीं, सारे जगत् के पदार्थों का अनुभव करनेवाले हम हैं। इन्द्रियाँ और मन नहीं, क्योंकि वे जड़ हैं । अनुभव करनेवाला तो एकमात्र चेतना का परिणाम है । जब ऐसा दृढ़तम विश्वास आत्मा में आ जाता है तब उसका साहस और धैर्य इतना बढ़ जाता है कि अशक्य से अशक्य कार्य भी वह क्षणमात्र में कर डालता है। १४. जिस समाचार को ऋपने शरीर द्वारा वर्षों में जान सकते हैं विद्यत शक्ति द्वारा मिनटों में जान सकते हैं। अवधि ज्ञान और मनःपर्ययज्ञान द्वारा इसके असंख्याखतवेंभाग समय में जान सकते हैं। केवलज्ञान द्वारा उस एक समाचार की बात तो दूर रहे तीनों लोक और त्रिकाल के समस्त समाचारों को एक समय में अनायास ही प्रत्यक्ष जान लेते हैं। इसका कारण केवल आत्मशक्ति का अचिन्त्य महत्त्व है, अतः अपना आत्मविश्वास गुण कभी मत भूले। १५. आत्मबल के बिना आत्मा अनन्त ज्ञानादिक की सत्ता नहीं रख सकता । जहाँ अनन्त बल है वहीं अनन्तज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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