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वर्णी-वाणी
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गुण था जिसकी नींव पर ही वे अपनी महत्ता का महल खड़ा कर सके।
८. कवि-व्याख्याता-लेखक, छात्र-छात्राएँ, विद्वान-विदुषियाँ, कर्जदार-साडूकार, मालिक-मजदूर, वैद्य-रोगी, अभियुक्तन्यायाधीश, सैनिक-सेनापति, युद्धवीर, दानवीर और धर्मवीर सभी को आत्मविश्वास गुण को परम आवश्यकता है। और की कथा छोड़ो; परमपूज्य वीतरागी साधुवर्ग भी इस गुण के द्वारा ही आत्मकल्याण करने में समर्थ होते हैं। सुकुमाल मुनि प्रकृति के अत्यन्त कोमल थे परन्तु इस गुण के प्रभाव से व्याघ्री द्वारा शरीर विदीर्ण किये जाने पर भी आत्मध्यान से रञ्चमात्र भी नहीं डिगे, उपसर्ग को जीतकर सर्वार्थसिद्धि के पात्र हुए, और द्वीपायन मुनि इस गुण के अभाव में द्वारका का विध्वंस कर स्वयं दुःखों के पात्र बने। . . सती सीता में यही वह प्रशस्तगुण ( आत्मविश्वास) था जिसके प्रभाव से रावण जैसे पराक्रमी का सर्वस्व स्वाहा हो गया, सती द्रोपदी में यही वह चिनगारी थी जिसने क्षण एक के लिये ज्वलन्त ज्वाला बनकर चीर खींचनेवाले दुःशासन के दुरभिमान द्रुम (अभिमान विष वृक्ष) को दग्ध करके ही छोड़ा। सती मैना सुन्दरी में यही आत्मतेज था जिससे वनमयी फाटक फटाक से खुल गया । सती कमलश्री और मीराबाई के पास यही विषहारी अमोघ मन्त्र था जिससे विष शरबत हो गया और फुफकारता हुआ भयङ्कर सप सुगन्धित सुमनहार बन गया ! .. १०.. बड़े बड़े महत्वपूर्ण कार्य जिन पर संसार आश्चर्य करता है आत्मविश्वास के बिना नहीं हो सकते। ...
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